बीते दिनों अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा 7 मुस्लिम देशों के लोगों को अमेरिका आने से रोकने की खबर पूरी दुनिया में छाई थीं. खबर मुस्लिम समुदाय से थी इसलिए अभी भी चर्चा जारी है. इस बीच एक खबर यह भी है कि म्यांमार में मुसलमान बेहद दयनीय जिंदगी जीने को मजबूर हैं लेकिन कहीं भी इसका ज़िक्र तक नहीं होता.
यहां रहने वाले रोहिंग्या दुनिया के ऐसे मुस्लिम हैं, जिनका सबसे ज्यादा दमन हुआ है. स्थिति यह है कि इन्हें नागरिकता तक नहीं मिली है। जब भी मुसलमानों का जिक्र होता है तो पाकिस्तान, अफगानिस्तान, ईरान, इराक, सऊदी अरब की बात होती है लेकिन म्यांमार के मुसलमानों के हालात पर कोई बात नहीं करता.
बहरहाल , यहां का निशुल्क सेवा देने वाला मुस्लिम अस्पताल धार्मिक अशांति में उलझे देश में एकता का प्रतीक ज़रूर साबित हो रहा है. यह अस्पताल जकात के पैसों से चलता है. जहाँ हर साल करीब चार लाख अमरीकी डॉलर खर्च कर मुसलमान बहुसंख्यक बौद्ध समुदाय की सेवा करते हैं.
स्थानीय मुस्लिम तरह-तरह की ज्यादतियां और मुश्किलें बर्दाश्त करते हुए भी समाजसेवा का दामन नहीं छोड़ रहे हैं. यहां मुस्लिम बहुत ही कम संख्या में हैं इसके बावजूद यहाँ का मुस्लिम अस्पताल बिना जात-पात के भेदभाव के जरूरतमंदों को निशुल्क सेवा उपलब्ध करवा रहा है जो सराहनीय कदम है.
हालाँकि, सरकार ने यहां के मुसलमानों के नागरिक अधिकार छीन लिये हैं इसके बावजूद यह अस्पताल सेवाभाव से लोगों की खिदमत में जुटा हुआ है।
वर्ष 1937 में स्थानीय मुस्लिम युवाओं के एक समूह ने रंगून में इस अस्पताल की शुरुआत की थी जिनका मकसद सभी समुदायों के जरूरतमंद लोगों सहायता प्रदान करना था. अपने मकसद को यह अस्पताल आज तक बखूबी निभा रहा है.
अस्पताल के प्रशासन ने साफ़ तौर पर कह रखा है कि जो बीमारी का खर्च वहां नहीं कर सकता है उसको मुफ्त सेवा प्रदान की जाए और जो वहन कर सकते हैं उनसे सामान्य शुल्क जाये.
बता दें कि म्यांमार में स्वास्थ्य सुविधाओं का खासा अभाव है जिसका ज़िक्र विश्व स्वास्थ्य संगठन भी कर चुका है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 191 देशों में समग्र स्वास्थ्य प्रणाली के प्रदर्शन में म्यांमार का 190 वां स्थान है. यहाँ के लोग स्वास्थ्य पर काफी पैसा खर्च करते हैं जबकि इस दिशा में सरकार द्वारा खर्च करने की राशि बहुत कम है . यहाँ मुसलमानों की आबादी कुल जनसँख्या की 4 फीसदी है.