By डा.वेद प्रताप वैदिक
भाजपा सांसद हुकुमसिंह ने अपनी पार्टी की कैसी किरकिरी करवाई है। उ.प्र. के कैराना से लोगों के भागने की खबर सच्ची हो सकती है, क्योंकि रोजी-रोटी की तलाश में गांव तो खाली होते ही हैं लेकिन हुकुमसिंह ने जिन 346 परिवारों के पलायन का शोर मचाया, उनके बारे में साफ-साफ कहा कि वे मुसलमानों के डर के मारे भाग रहे हैं। वे हिंदू परिवार हैं। यह बात इतनी गंभीर है कि केंद्र सरकार और भाजपा को इस पर विशेष ध्यान देना चाहिए था। उसने दिया भी! कोई भी भागे, वह हिंदू हो या मुसलमान हो या सिख हो, थोक में जब लोग अपना गांव छोड़कर भाग रहे हों तो राज्य के सामने यह बड़ी चुनौती होती है। भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में यही मुद्दा सबसे अधिक चर्चित रहा।
भाजपा के शीर्ष नेता भी फिसल पड़े। उन्होंने इस सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए उप्र की सरकार को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने इसे मुजफ्फरनगर के दंगों के साथ जोड़कर अगले चुनाव का मुद्दा बना दिया लेकिन जब अखबारों और चैनलों के खोजी पत्रकारों ने हुकुमसिंह के दस्तावेज की जांच कैराना जाकर की तो सांसद महोदय के हाथ-पांव ठंडे पड़ गए। उन्होंने एक दूसरी सूची भी जारी की लेकिन साथ में यह भी माना कि इसे हिंदू-मुस्लिम मामला बनाना गलत था। यह तो सिर्फ कानून-व्यवस्था का मामला है। हुकुमसिंह पढ़े-लिखे आदमी हैं। अगूंठा-टेक नहीं हैं। उन्हें गलतबयानी करने के पहले दस बार सोचना चाहिए।
उनकी वजह से भारत की बदनामी हुई। भाजपा का कितना बड़ा नुकसान हुआ। उसकी छवि खराब हुई। यह सरकार जो अच्छे काम कर रही है, उसका प्रचार तो कम होता है लेकिन इस तरह के सांप्रदायिक और मूर्खतापूर्ण कार्य पार्टी-नेतृत्व को नीचा देखने के लिए मजबूर करते हैं। जहां तक कैराना का सवाल है, उसकी 85 प्रतिशत आबादी मुसलमान है लेकिन न तो बाबरी मस्जिद के वक्त और न ही मुजफ्फरनगर दंगों के वक्त वहां कोई गड़बड़ हुई। खोजी पत्रकारों को धन्यवाद कि उन्होंने कैराना को बचाया, वरना भाजपा ने तो अपनी इज्जत दांव पर लगा ही दी थी। हुकुमसिंह ने भी जिम्मेदारी का परिचय दिया। अपनी भूल सुधारी।
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