पेइचिंग। न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (NSG) ने पिछले हफ्ते साउथ कोरिया की राजधानी सोल में समग्र बैठक की थी। इसी हफ्ते गुरुवार शाम को एनएसजी के सभी सदस्यों ने स्पेशल कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लिया था। इस कॉफ्रेंस में परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर नहीं करने वाले देशों को एनएसजी में शामिल करने पर बात हुई थी। चीन का कहना है कि कम से कम 10 देशों ने नॉन एनपीटी देशों को एनएसजी की सदस्यता देने का विरोध किया था।
चीनी के सरकारी मीडिया ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, ‘इंडिया ने एनपीटी पर हस्ताक्षर नहीं किया है लेकिन वह एनएसजी जॉइन करने को लेकर सबसे ज्यादा सक्रिय था। सोल में मीटिंग शुरू होने से पहले इंडियन मीडिया में इसे लेकर काफी गहमागहमी रही। कुछ मीडिया घरानों ने दावा किया कि 48 सदस्यों वाले एनएसजी देशों में से 47 ने भारत की सदस्यता का समर्थन किया है जबकि केवल चीन विरोध कर रहा है।’
ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, ‘1975 में एनएसजी के गठन के बाद से ही स्पष्ट है कि सभी सदस्यों का एनपीटी पर हस्ताक्षर होना अनिवार्य है। यह संगठन का प्राथमिक सिद्धांत है। अभी इंडिया पहला देश है जो बिना एनपीटी पर हस्ताक्षर किए एनएसजी मेंबर बनने की कोशिश कर रहा है। यह चीन और अन्य एनएसजी सदस्यों के लिए सिद्धांत की सुरक्षा में इंडिया की सदस्यता का विरोध करना नैतिक रूप से प्रासंगिक है।’
चीन के आधिकारिक मीडिया ने लिखा है, ‘हालांकि इस मामले में इंडियन पब्लिक की प्रतिक्रिया काफी तीखी रही। भारत के कुछ मीडिया घरानों ने चीन को गाली देना शुरू कर दिया। कुछ भारतीयों ने चीनी मेड प्रॉडक्ट्स के बहिष्कार की बात कही। इसके साथ ही BRICS ग्रुप से इंडिया के हटने की मांग भी की गई। भारत को एनएसजी में बिना एनपीटी पर हस्ताक्षर किए शामिल होने की शक्ति अमेरिकी समर्थन से मिली। दरअसल वॉशिंगटन और इंडिया के रिश्तों में चीन को रोकना निहित है। अमेरिका का इंडिया के साथ बढ़ती करीबी का मुख्य उद्देश्य को चीन का सामना करना है।’