मंसूबा बनी, रकम मिली मगर नहीं हो सका काम

शहर सरकार की नुमाइंदे हो या इंतेजामिया, वे मंसूबों को बनाने और उनको मुस्तकिल कमेटी और कॉर्पोरेशन बोर्ड की बैठकों में मंजूरी कराने में माहिर हैं, लेकिन मंसूबा सतह पर उतरती ही नहीं हैं। ऐसा भी नहीं है कि कॉर्पोरेशन में रकम की कमी है। हां, कमी है, तो सिर्फ कॉर्पोरेशन इंतेजामिया की कूवत इरादी की।

इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि रियासती हुकूमत से कॉर्पोरेशन को माली साल २०१२-13 में 94.22 करोड़ की ग्रांट रकम मिली, लेकिन एक साल बाद भी यह रकम मंसूबों पर खर्च नहीं हो सकी।

2008 में मिले 26 करोड़

यही नहीं, कॉर्पोरेशन को सख्त कचरा इंतेजामिया को लेकर नुरूम मंसूबा के तहत 26 करोड़ रुपये साल 2008 में मिले थे, वह रकम अब तक खर्च नहीं हो सकी है। यह रकम ब्याज समेत बढ़ कर 29 करोड़ रुपये हो गयी है। इसके अलावा 11वें फ़ायनेंस कमीशन से क़ौमी गंदी बस्ती तरक़्क़ी मंसूबा के तहत मिली रकम भी सालों से पड़ी है। उसे भी खर्च नहीं किया जा सका है। अगर रकम खर्च होती, तो गंदी बस्ती भी चमक उठती और वहां के लोगों को काफी फ़ायदा मिलता.