मदीना मुनव्वरा में महफ़िल ख़त्म ए बुख़ारी का एहतिमाम

ये बात जुनूबी हिंद बल्कि तमाम हिंदूस्तानी मुसल्मानों के लिए क़ाबिल फ़ख़र है कि मौलाना ख़्वाजा शरीफ़ शेख़ उल्हदीस जामिया निज़ामीया से बुख़ारी शरीफ़ और शमाइल तिरमिज़ी का दरस लेने की ग़रज़ से सऊदी अरब के मुख़्तलिफ़ मुक़ामात से अरब उल्मा की एक जमात रुजू हुई ।

मक्का मुकर्रमा से दरस का आग़ाज़ हुआ और मदीना मुनव्वरा में इख़तेताम अमल में आया । सिर्फ दो हफ़्तों के अंदर दो किताबों
का तक्मिला हुआ । फ़ज्र की नमाज़ के बाद से दरस का सिल्सिला शुरू होता और रात में दस बजे ख़त्म‌ होता । दरमयान में नमाज़ों और ह‌वाइज ज़रुरीया के इलावा कोई दूसरी मस्रूफीयत‌ ना होती ।

मदीना मुनव्वरा में लोग हैरान‍ ओ‍ शूशदर थे कि एक हिन्दी आलीम से अरब उल्मा बुख़ारी शरीफ़ पढ़ रहे हैं । मौलाना दौरान दरस इल्म-ओ-इर्फ़ान के एसे मोती बिखेर रहे थे कि उल्मा हैरान और मसरूर नज़र आरहे थे । आप के चंद काबिल-ए-ज़िकर शागिर्दों के नाम ये हैं मंज़र बिन मुहम्मद मदीद वज़ारत अल्शूउन अलईस्लामी (मदीना मुनव्वरा ) मुहम्मद बिन अहमद हरीरी प्रोफेसर मलिक अबदुल अज़ीज़ यूनीवर्सिटी (जीद्दा ) नाइफ़ बिन हमद अबदुल्लाह बानी मद्रेसा हबीब बिन अदी (रियाज़ ) उम्र बिन इब्राहीम बिन अबदुल्लाह अलतवीजरी अमीन अलमकतबा (अलक़सीम ) सालिह बिन अबदुल्लाह हाशीमी (रियाज़ )‍ ओ‍ मूदर्रिस मस्जिद नबवी शरीफ़ इन उल्मा ने मौलाना की बे इंतिहा-ए-तारीफ़ करते हुए कहा कि आप जामिया निज़ामीया हिंद में मंबा नूर हैं ।