मुख्य न्यायिक मैजिस्ट्रेट ने सिमी एनकाउंटर मामले में सवाल उठाते हुए सरकार से पूछा है कि कोर्ट सिर्फ जेल कर्मचारी के बयानों पर यकीन क्यों करे। मामले की कार्यवाही कोर्ट में जाने से सरकार पर अधिक दबाव बनेगा। शिवराज चौहान सरकार सिमी सदस्यों के एनकाउंटर मामले में मानव अधिकारों के हनन के आरोप में विभिन्न राजनैतिक पार्टियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा कड़ी आलोचना का सामना कर चुकी है।
सिमी के आठ सदस्य भोपाल जेल में कैद थे। इनसभी आठ आरोपियों की सुनवाई सीआरपीसी के तहत चल रही थी। कोर्ट को इन आरोपियों के एनकाउंटर की जानकारी देनी चाहए थी। सी जे एम भूभास्कर यादव ने सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि एनकाउंटर की जानकारी कोर्ट को 9 दिन बाद क्यों दी गयी जबकि इन 9 दिनों में पुलिस और प्रशासन के द्वारा मीडिया में तरह तरह के बयान लगातार दिए गए।
कोर्ट ने पूरे मामले को एक बेहद गंभीड़ मुद्दा बताते हुए सी जे एम यादव ने कहा कि आरोपियों के पोस्टमार्टम से पहले अगर किसी न्यायिक मजिस्टेट को इसकी सूचना दी गयी थी तो इस बात की जानकारी कोर्ट में देनी चाहिए थी। यादव ने यह भी कहा कि सरकार ने जांच का ऐलान किया है इसका मतलब यह है कि मामले में लग रहे आरोप की जांच कर निष्कर्ष निकालना चाहिए। कोर्ट ने मारे गए सिमी सदस्य के वकील परवेज़ आलम को जेल में बंद चार सिमी कैदियों से मिलने की इजाज़त दी है।
पुलिस अधिकारियों द्वारा एनकाउंटर के बयान ने हज़ारो साल सवाल खड़े कर दिए हैं और साथ ही विपक्ष, अधिकार के कार्यकर्तों और सिमी सदस्यों के परिवार वालो को सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के न्यायाधीशों द्वारा जाँच की मांग करने के लिए उत्साहित भी किया है।
सरकार ने एनआईऐ जांच के एलान को रद्द कर के एनकाउंटर के 4 दिन बाद हाई कोर्ट के रिटायर न्यायधीश के द्वारा न्यायिक जांच का एलान कर दिया था।