मसला फ़लस्तीन पर आलमी बिरादरी और अरब मुमालिक की बेहिसी अफ़सोसनाक

दुनिया अपनी मसरूफ़ियात में इस क़दर मसरूफ़ होचुकी हैके उसे इस बात का एहसास ही नहीं रहा कि ख़त्ता ज़मीन पर एक मुल्क आज भी अपनी आज़ादी की जद्द-ओ-जहद कररहा है और वो वाहिद मुमलकत है जो गु़लामी की ज़िंदगी गुज़ारने पर मजबूर है।

मुफ़्ती अज़म फ़लस्तीन फ़ज़ीलत अलशेख़ मौलाना मुहम्मद अहमद हुसैन ने इंडो अरब लेग के ज़ेरे एहतेमाम मुनाक़िदा यौम फ़लस्तीन जल्सा-ए-आम से ख़िताब के दौरान ये बात कही।

उन्होंने बताया कि फ़लस्तीन वाहिद इसी ममलकत है जो गु़लामी और पाबंदियों के साथ ज़िंदगी गुज़ारने पर मजबूर है। फ़लस्तीनी अवाम ग़ासिब इसराईली फ़ौज के हिसार में अपनी मर्ज़ी से हमल-ओ-नक़ल करने से भी क़ासिर हैं।

इन मज़लूमों की हिमायत के लिए आलमी सतह पर इंसानी हुक़ूक़ की बात करने वाले भी ख़ामोश तमाशाई बने हुए हैं। मुफ़्ती-ए-आज़म फ़लस्तीन ने बताया कि पिछ्ले चंद दिनों के दौरान 300 से ज़ाइद फ़लस्तीनी जाम शहादत नोश करचुके हैं लेकिन दुनिया उस तरफ तवज्जा नहीं करती।

उन्होंने कहा कि पिछ्ले 57 यौम से जेलों में फ़लस्तीनी कैदी भूक हड़ताल कररहे हैं लेकिन इस के बावजूद किसी मुल्क का हुक्मराँ यह ज़राए इबलाग़ इदारे ये जानने की कोशिश नहीं कररहे हैं कि आख़िर फ़लस्तीनी कैदी क्युं इतने लंबे अर्सा से भूक हड़ताल कररहे हैं । फ़ज़ीलत अलशेख़ मुहम्मद अहमद हुसैन ने बताया कि मस्जिदे अकसा-ओ-फ़लस्तीन के माज़ी से दुनिया वाक़िफ़ है।

वाक़िया मेराज मस्जिदे अकसा के तक़द्दुस के लिए काफ़ी है। सीरत-ओ-सुन्नत की किताबों के अलावा क़ुरआन-ओ-तारीख इस्लाम में भी मस्जिदे अकसा की हुर्मत का तज़किरा मौजूद है।

इस के बावजूद इस्लामी दुनिया की तरफ से मस्जिदे अकसा को नजरअंदाज़ किया जाना नाक़ाबिल फ़हम है। उन्होंने मस्जिदे अकसा की हिफ़ाज़त मुसलमानों के अक़ीदा-ओ-इमां का हिस्सा है लेकिन इस के अलावा मसला अल-क़ूदस-ओ-फ़लस्तीन रसालते (स०) ओ-नबोत(स०) पर यक़ीन रखने वालों के साथ साथ इंसानियत की बात करने वालों का भी मसला बन चुका है।

उन्होंने कहा कि अहले इमां को ये याद रखना चाहीए कि हरमेन शरीफ़ैन के बाद मस्जिदे अक़सा वाहिद एसी जगह है जहां इबादत की नियत से सफ़र करने की गुंजाइश दीन में मौजूद है।

उन्होंने बताया कि 15 नवंबर 1988 को मुमलकत फ़लस्तीन को तस्लीम करने के बाद के हालात दुनिया के सामने हैं। तारीख के हवालों से उन्होंने कहा कि तामीर मस्जिदे अकसा के बाद से कभी मस्जिदे अकसा में आतिशज़नी का वाक़िया पेश नहीं आया था लेकिन इसराईली तसल्लुत के बाद अंदरून दो साल ईसराईलीयों ने इस मुक़द्दस मस्जिद को नज़रे आतिश करने की कोशिश की।

फ़ज़ीलत अलशेख़ ने बताया कि मस्जिदे अक़्सा के अतराफ़-ओ-अकनाफ़ के इलाक़ों में तारीख़ी-ओ-तहज़ीबी शवाहिद-ओ-आसार के हुसूल के नाम पर बड़े पैमाने पर सुरंगें खोदी जा रही हैं जो कि मस्जिदे अकसा की इमारत के लिए ख़तरे का बाइस साबित होसकती हैं।

उन्होंने हिंद। फ़लस्तीन ताल्लुक़ात को मज़बूत-ओ-बेहतर बनाने की ज़रूरत पर ज़ोर देते हुए कहा कि हैदराबाद में मस्जिदे अकसा और फ़लस्तीन के लिए अपने दिलों में तड़प रखने वालों को देख कर उन्हें बेइंतिहा कुशी हुई।

उन्होंने इस मौके पर सदर इंडो अरब लेग सय्यद विक़ारुद्दीन कादरी एडीटर एनचीफ़ रोज़नामा रहनमाए दक्कन से इज़हार-ए-तशक्कुर करते हुए कहा कि आज़ादी फ़लस्तीन के लिए जारी ये तहरीक इं शा अल्लाह ज़रूर कामयाब होगी।