सदर जम्हूरीया परनब मुखर्जी ने एक बिल को अपनी मंज़ूरी दे दी है जो जेल में कैद लोगों के चुनाव लड़ने का हक़ बरक़रार रखता है, इस तरह सुप्रीम कोर्ट के हुक्मनामा को नजर अंदाज़ कर दिया गया है। क़ानून अवामी नुमाइंदगी (तरमीम और तौसीक़) 2013 फ़ाज़िल अदालत के 10 जुलाई के हुक्मनामे की नफ़ी करता है जिस में कहा गया कि जेल में बंद लोग आर पी एक्ट के मुताबिक़ वोट नहीं दे सकते हैं और इसलिए पार्लियामेंट या रियासती मुक़न्निना जात के लिए इंतेख़ाबात लड़ने के अहल नहीं हो सकते।
आर पी एक्ट के सेक्शन 62 की ज़ेली दफ़ा (5) में एक गुंजाइश का इज़ाफ़ा करते हुए ये बयान करता है कि कोई शख़्स को हिरासत में रहने पर वोटर के हक़ से महरूम नहीं किया जा सकता क्योंकि इसका हक़ सिर्फ़ आरिज़ी तौर पर मुअत्तल होता है। वज़ारत क़ानून ने आज एक बयान में कहा कि अवामी नुमाइंदगी (तरमीमी) बिल 2013 को सदर जम्हूरीया हिंद की मंज़ूरी हासिल हो गई है।
तरामीम में से एक में बयान किया गया है कि चूँकि मुक़य्यद शख़्स का नाम इंतेख़ाबी फ़हरिस्त में बरक़रार होता है, इसलिए वो राय दहिंदे ( Voters) की हैसियत से बरक़रार रहता या रहती है और इलेक्शन के लिए नामज़दगी दाख़िल कर सकते हैं। ये तरमीम 10 जुलाई से नाफ़िज़ुल अमल होगी, जिस रोज़ फ़ाज़िल अदालत ने अपना फैसला दिया था। सुप्रीम कोर्ट हुक्मनामा का जायज़ा लेने के बाद हुकूमत ने मुराफ़ा दाख़िल किया था, लेकिन नतीज़े का इंतेज़ार करने के बजाय इस ने सूरत-ए-हाल से फ़ौरी निमटने की ज़रूरत महसूस की।
फ़ाज़िल अदालत ने क़ब्ल अज़ीं अपने फैसले पर रवां माह नज़र-ए-सानी से इत्तिफ़ाक़ किया था। फ़ाज़िल अदालत ने अपने फैसले में रोलिंग दी थी कि सिर्फ़ कोई रायदहिंदा ही चुनाव लड़ सकता है और वो जेल में महरूस या पुलिस की तहवील में होने के सबब वोट डालने का हक़ खो देता या खो देती है।
ताहम अदालत ने वाज़िह किया था कि ना अहलीयत का इतलाक़ ऐसे अश्ख़ास पर नहीं होगा जो कोई भी क़ानून के तहत बतौर एहतियात हिरासत में लिए जाएं। सदर जम्हूरीया ने पार्लियामेंट (इंसेदाद ना अहलीयत) तरमीमी बिल 2013को भी अपनी मंज़ूरी दे दी, जो एस सी और एस टी के क़ौमी कमीशनों के चेयर पर्सन्स को मुनफ़अत बख़्श ओहदा के दायराकार से दूर रखेगा। ये क़ानून यक़ीनी भी बनाएगा कि कोई एम पी इस ओहदा पर ना अहलीयत के ख़तरा का सामना किए बगैर फ़ाइज़ हो सकता है। इस क़ानून पर 19 फरवरी 2004 से अमल दरआमद तसव्वुर किया जाएगा।