महलूकीन को ‘दहशतगर्द’ क़रार देने के बाद तहकीकात का हुक्म बेमाना

हुकूमत जब फ़ैसला कर चुकी है कि महलोकीन दहशतगर्द थे तो फिर तहक़ीक़ात का कोई मतलब ही बाक़ी नहीं रहा। हुकूमते तेलंगाना की जानिब से जारी कर्दा जी ओ एम एस मौरर्ख़ा 13 अप्रैल 2015 में दिए गए अहकामात दूसरी ही सतर में आलीर एंकाउन्टर में जान गंवाने वाले वक़ार अहमद, सैयद अमजद, मुहम्मद ज़ाकिर, मुहम्मद हनीफ़ और इज़हार ख़ान को महकमा ला ऐंड आर्डर ने दहशतगर्द क़रार दे दिया है।

जब हुकूमत ही एस आई टी की तशकील के लिए जारी कर्दा अहकामात में इन महलूक नौजवानों को दहशतगर्द क़रार दे दिया तो फिर इन नौजवानों की मौत के मुताल्लिक़ तहक़ीक़ात के लिए तशकील कर्दा कमेटी का ज़हन क्या होगा? इस का अंदाज़ा बाआसानी किया जा सकता है।

अदालत ने जिन नौजवानों को अब तक दहशतगर्द क़रार नहीं दिया है, उन्हें पुलिस और हुकूमत दहशतगर्द क़रार दे रही है। नौजवान बेक़सूर थे या नहीं इस बात का फ़ैसला अदालत में ज़ेरे दौरां था, लेकिन पुलिस की जानिब से उन्हें अदालती तहवील में फ़र्ज़ी एन्काउंटर में हलाक किया जाना ग़ैर इंसानी कार्रवाई होने के इलावा उन्हें इंसाफ़ से महरूम कर देने की मज़मूम कोशिश क़रार दी जा रहा है। ऐसे में हुकूमत को पुलिस ओहदेदारों की सरपरस्ती के बजाय मज़लूमों से इंसाफ़ को यक़ीनी बनाना चाहीए।