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मुकर्रम मस्जिद -उल- अक़सा असास शाह सादुल्लाह (र) घांसी बाज़ार फ़न तामीर का आला नमूना

नुमाइंदा ख़ुसूसी

शहर हैदराबाद में हमारे इस्लाफ़ ने जहां दीगर ख़ूबसूरत इमारतें तामीर करवाई हैं वहीं अपने वक़्त की इंतिहाई ख़ूबसूरत तरीन मसाजिद भी क़ायम की हैं। हैदराबाद में ख़ूबसूरत और फ़न तामीर की शाहकार मसाजिद की एक लंबी फ़ेहरिस्त है। जिन में सर-ए-फ़हरिस्त वो मस्जिद है जो तारीख़ी चारमीनार की दूसरी मंज़िल पर वाक़ै है उन्ही में से एक मुकर्रम मस्जिद उल-अक़सा असास शाह सादुल्लाह है। ये मस्जिद घांसी बाज़ार, रकाब गंज में हज़रत सय्यद शाह सादुल्लाह साहिब नक़्शबंदी मुजद्ददी (र) की दरगाह शरीफ़ से मुत्तसिल वाक़ै है। 1268 में उस की तामीर की तकमील हुई। 164 साल का तवील अर्सा गुज़र जाने के बावजूद ये मस्जिद इंतिहाई ख़ूबसूरत है। ये फ़न तामीर की निहायत ख़ूबसूरत-ओ-आला नमूना है।

मस्जिद की ख़ूबसूरती, बनावट और तर्ज़ तामीर का देखने से ताल्लुक़ है। अलफ़ाज़ में उसे ब्यान नहीं किया जा सकता। इस सिलसिला में हम ने जब मस्जिद-ओ-दरगाह के मुतवल्ली-ओ-सज्जादा नशीन सय्यद शाह मुहम्मद ख़िज़र नक़्शबंदी मुजद्ददी से मुलाक़ात की जो काबिल मुबारकबाद हैं कि उन्हों ने इस ख़ूबसूरत मस्जिद को अपनी साबिक़ा हालत पर अभी तक बर क़रार रखा है। ख़ूबसूरती में कमी वाक़ै होने के अंदेशा से इस में कुछ भी कमी और इज़ाफ़ा नहीं किया गया। मज़कूरा मस्जिद में 2 बजे नमाज़ जुमा होती है जिस में मुस्लियों की तादाद कसीर होती है। जिस की वजह से मस्जिद के सामने के हिस्सा में एक साइबान की ज़रूरत है लेकिन सय्यद शाह मुहम्मद ख़िज़र सज्जादा नशीन ने बताया कि अगर हम साइबान डालने या छत वग़ैरा बनाने का कोई काम करते हैं तो मस्जिद की ख़ूबसूरती मुतास्सिर होगी।

जिस का एतराफ़ माहिरीन को भी करना पड़ा। जो हज़रात ख़ूबसूरत मसाजिद के देखने का शौक़ रखते हूँ और उन में नमाज़ पढ़ने के मुश्ताक़ होँ उन्हें एक बार ज़रूर इस मस्जिद का रुख करना चाहीए। इस मस्जिद के क़रीब हज़रत सय्यद शाह साद उल्लाह साहब (र) की दरगाह शरीफ़ भी है जो काफ़ी बुलंद गुम्बद है। इस मस्जिद में और दरगाह में आकर इतमीनान और कलबी सुकून महसूस होता है। वक़्फ़ बोर्ड की गज़्ट में मस्जिद-ओ-दरगाह का ज़िक्र मौजूद है। इन दोनों के तहत 2215 मुरब्बा गज़ अराज़ी है। क़ारईन इस दरगाह में आराम फ़र्मा रहे बुज़ुर्ग का मुख़्तसर तआरुफ़ आप के सामने पेश किया जाता है। हज़रत सय्यद शाह साद उल्लाह साहिब नक़्शबंदी मुजद्ददी (र) की विलादत मौज़ा अचड़ी पकली इलाक़ा पंजाब बह सरहद अफ़्ग़ानिस्तान 1199 हमें हुई। आप (र) ने उलूम ज़ाहिर की इबतिदाई तालीम अपने वतन के मदारिस में हासिल की और फिर उन की तकमील अपने पैर भाई हज़रत मौलाना अखुंद शहर मुहम्मद साहब (र) से की। आप (र) के ख़ालाज़ाद भाई हज़रत सय्यद शाह मुहम्मद उसमान नक़्शबंदी मुजद्ददी जो इबतिदा ही से आप के हमदरस थे जो आप के पीर भाई, हमसफ़र और फिर बाद में आप के ख़लीफ़ा अव्वल-ओ-जांनशीन हुए।

हज़रत शाह साद उल्लाह नक़्शबंदी मुजद्ददी (र) ने हज़रत ग़ुलाम अली शाह देहलवी नक़्शबंदी मुजद्ददी (र) की सोहबत में क़रीब 12 साल रयाज़त-ओ-मुजाहिदात, ज़िक्र-ओ-अज़कार, मुराक़बा-ओ-मुहासिबा फ़रमाया और दर्जा कमाल को पहूंचे। पीर कामिल ने आप को शाह का ख़िताब अता फ़रमाया और तरीक़ा नक़्शबंदिया, मुजद्ददीया, क़ादरिया, चिश्तिया, सुहरवर्दिया और किब्रोया मैं इजाज़त बैअत-ओ-ख़िलाफ़त अता फ़रमाई। 1240 हमें अपने पीर के विसाल के बाद हमराह हज़रत मौलाना सय्यद शाह उसमान नक़्शबंदी मुजद्ददी हरमैन शरीफ़ैन तशरीफ़ ले गए और फ़रीज़ा हज अदा किया और आप जिस वक़्त बारगाह ख़ैरुलअनाम सल लल्लाह अलैहे वसल्लम में हाज़िरी के लिए तशरीफ़ ले गए, आप ने फ़रमाया : साद उल्लाह तुम हिंदूस्तान चले जाओ वहां तुम से बहुत लोग फ़ैज़याब होने वाले हैं। इस इरशाद मुबारक की तामील में आप हिंद का इरादा फ़रमाकर बराह मद्रास-ओ-कुरनूल हैदराबाद दक्कन तशरीफ़ लाए।

और क़रीब 2 साल तक मस्जिद अलमास में क़ियाम किया। फिर आप ने मुहल्ला उर्दू शरीफ़ में नवाब जान के बाग़ का एक हिस्सा ख़रीदा और इसी बाग़ में अपनी ख़ानक़ाह ख़ानक़ाह नक़्शबंदिया मुजद्ददीया का क़ियाम अमल में आया। इसी बाग़ में एक मस्जिद जो फ़न तामीर का आला नमूना है ज़ेर-ए-एहतिमाम सय्यद शाह मुहम्मद उसमान नक़्शबंदी मुजद्ददी (र) 1268 में तामीर की तकमील की। आप की इस मस्जिद की क़ता तारीख़ दक्कन के मशहूर आलम सूफ़ी-ओ-शायर मौलाना शमस उद्दीन फ़ैज़ (र) ने मुकर्रम मस्जिद उल-अक़सा असास शाह साद उल्लाह निकाला जो आज भी मस्जिद पर कुंदा है। आप अकाबिर-ओ-मशाहीर औलिया-ए-ओल्मा कामेलीन-ओ-आरफीन से हैं। आप मरज्जा ख़लाइक़ अवाम-ओ-ख़वास ओल्मा-ओ-अरफ़ा-से थे। जिस वक़्त आप हैदराबाद में तशरीफ़ लाए उस वक़्त से से आप की वफ़ात तक 25 साल के अर्सा में बड़ी बड़ी शख़्सियात आप की बारगाह में बारयाब हुईं।

दक्कन के ओल्मा-ओ-मशाइख़, आम-ओ-ख़ास के इलावा हिंद बैरून हिंद मसलन बुख़ारा, अफ़्ग़ानिस्तान, बदख़शाँ और यमन वग़ैरा के ओल्मा-ओ-फ़ुज़्ला और अस्हाब तरीक़त आप की बारगाह में फ़ैज़याब होते। दक्कन में आप से हज़ारहा अश्ख़ास तरीक़ा नक़्शबंदिया-ओ- मुजद्ददीया में बैअत हुए। खल़िफ़ा की तादाद तो सैंकड़ों में बताई जाती है। इसी लिए आप को नक़्शबंदिया दक्कन या इमाम उलतरीक़ा, अलनक़शबनदीया, अलमुजद्ददीया फ़ी अलदकन के लक़ब से याद किया जाता है। आप का 28 जमादी उलअव्वल 1270 ह रोज़ दो शंबा को हैदराबाद में इंतिक़ाल हुआ। हर साल आप का उर्स 27 और 28 जमादी उलअव्वल को मनाया जाता है।

इस के साथ साथ ये भी गोश गुज़ार करते चलें कि अपने वक़्त के बलंद पाया बुज़ुर्ग के इस दरगाह शरीफ़ के ज़ाइरीन और फ़न तामीर की शाहकार मस्जिद के मुस्लियों ने नुमाइंदा सियासत को इस बात से वाक़िफ़ करवाया कि मस्जिद और दरगाह से मुत्तसिल भैंसों की डुडी है जिस की वजह से ज़ाइरीन और नमाज़ के लिए आने वाले मुस्लियों को गंदगी और इंतिहाई बदबू महसूस होती है। सज्जादा नशीन से रुजू होने पर उन्हों ने बताया कि जिन लोगों ने अख़बार सियासत में भैंसों की डुडी के ताल्लुक़ से शिकायत की है वो मुतमइन रहें इंशाअल्लाह बहुत जल्द इस मसला को हल कर लिया जाएगा।

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