मुजफ्फरनगर :10 हजार अभी भी बेघर

मुजफ्फर नगर के दंगे को पांच महीने गुज़र चुके हैं लेकिन मुतास्सिरों की दुश्वारियां कम नहीं हुई हैं। इंतेज़ामिया के दावे भले ही कुछ हों, हुकूमत अदालत में कोई भी हलफनामा दे, हकीकत जौला और बसी के कैम्पो में जाकर देखी जा सकती है।

अभी भी हजारों लोग टेंट्स में आसरा लिए हैं। बेघर हुए लोग जिले के अलग-अलग गांवों में पनाह लिये हुए है।

सितंबर में हुए दंगे में मुजफ्फरनगर और शामली जिलों से 50 हजार से ज्यादा दंगा के मुतास्सिरों ने कैम्पो में पनाह लिये हुए है। राहत कैंपों को लेकर सियासत भी गरमाई, बहाली के लिए अखिलेश की हुकूमत ने 90 करोड़ बांट दिए, लेकिन कैम्प फिर भी खाली नहीं हुए।

सर्दी के कहर से बुजुर्गों और बच्चों की मौतें हुईं। बेघर मुस्लिमों के मामले ने तूल पकड़ा तो हुकूमत ने कड़ा रुख इख्तेयार कर लिया। बुलडोजर चले, पनाहगजीन को जबरदस्ती कैंपों से हटाया गया। इंतेज़ामिया ने दावा कर दिया कि कैम्प खाली हो गए हैं।

यही रिपोर्ट हुकूमत ने सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा दी। मुश्किल हालात, गांव लौटने का खौफ और जिंदगी से जुड़ी दुश्वारियां इंतेज़ामिया के दावों से बिल्कुल हैं। बुढ़ाना के जौला और शाहपुर के बसीकलां में अभी भी तंबुओं के नीचे हजारों जिंदगियों की हलचल है।

सुप्रीम कोर्ट के सख्त रुख के बाद रियासत की हुकूमत अब राहत कैंपों में जान गंवा बैठे बच्चों की मौत का दर्द दो-दो लाख रुपये देकर मिटाएगी। इसमें पांच साल से कम उम्र के बच्चों को मुआवजे का हकदार माना गया है।

जौला और लोई के कैम्पो में कड़ाके की ठंड के दौरान मरने वाले 12 बच्चों के घरवालों को मुआवजा मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट की अगली सुनवाई से पहले ही मुतास्सिरों को यह रकम दे दी जाएगी। मुजफ्फरनगर दंगे पर सुप्रीम कोर्ट में दर्ज 29 दरखास्त ने हुकूमत को फंसा दिया है।

चीफ जस्टिस पी सदाशिवम की सदारत वाली बेंच ने जुमेरात को सुनवाई कर ठंड में मारे गए बच्चों को दो-दो लाख रुपये मुआवजा और सीबीआई जांच पर फैसला महफूज़ रख लिया है।

——————बशुक्रिया: अमर उजाला