मुजरिमों को सजा दिलाने में झारखंड पीछे

एनसीआरबी की 2012 की रिपोर्ट के आंकड़े के मुताबिक मुजरिमों को सजा दिलाने का क़ौमी औसत 38.5 फीसद है, जबकि झारखंड में यह अदाद सिर्फ 23.2 फीसद है। हमें इस आंकड़े को पीछे छोड़ना होगा, क्योंकि कानून में डर का मतलब डंडा का डर नहीं होना चाहिए, बल्कि इस बात का डर होना चाहिए कि नियम तोड़ने पर कानून सजा देगा। किसी भी समाज में जब निजाम बनाये रखने के लिए पुलिस बर्बरता का इस्तेमाल करती है, तो वह समाज सभ्य होने का दावा नहीं कर सकता है। बहुत से रियासतों के अहम शहरों में ‘सीसीटीवी सर्वेलांस सिस्टम’ लागू किया जा रहा है। इससे न सिर्फ एक महफूज़ माहौल तैयार हो रहा है, बल्कि नियम कानून को लागू करने में भी मदद मिल रही है। एक्जाम्पल के लिए सबसे अच्छा असर ट्रैफिक का नियम मानने पर पड़ रहा है। यह सच ही कहा गया है कि जो शहरी ट्रैफिक के नियमों का पालन करता है, वह सख्श संगीन जुर्म करेगा, इसकी काफी कम इमकान है।

ऊपर दिये एक्जाम्पल कुछ कदम हैं जिनके तरफ से फौरी तौर पर पुलिस निजाम में सुधार लाया जा सकता है। और भी कई दूर के उपाय हो सकते हैं लेकिन यह यकीन है कि आम शहरियों के ज़िंदगी में बेहतर तब्दील लाने का इससे अच्छा वक़्त और कोई नहीं हो सकता।
(रायटर एसटीएफ के आइजी हैं और ये उनके ज़ाती ख्याल हैं। )