मुश्किलों के बावजूद अपनी आवाज़ को दबने नहीं दी कश्मीर की ये मुस्लिम महिलाएं

कश्मीर: कश्मीर पिछले कई बरसों से हिंसा का शिकार रहा है. बावजूद इसके भारत प्रशासित कश्मीर की रुख़साना बीते 40 सालों से शायरी कर रही हैं. रुख़साना, निगहत या फिर परवीन आज़ाद, इन सभी औरतों की अहमियत इसलिए बढ़ जाती है कि इन्होंने इस दौरान भी अपनी आवाज़ को दबने नहीं दिया.

Facebook पे हमारे पेज को लाइक करने के लिए क्लिक करिये

बीबीसी के हवाले से, 60 साल की रुख़साना की तरह ही निगहत साहिबा, महमीत सईद और परवीन, भारत प्रशासित कश्मीर की वो औरतें हैं जो शेरो-शायरी और गायकी के ज़रिए कामयाबी की नई दास्तान लिख रही हैं.रुख़साना कहती हैं, जब शुरू में मैं रेडियो स्टेशन शेर पढ़ने जाती थी तो मुझे झूठ बोलना पड़ता था कि मैं रेडियो नहीं गई थी बल्कि रेडियो वाले यूनिवर्सिटी में रिकॉर्डिंग करने आए थे. अब सोच में तब्दीली तो आ रही है लेकिन सुस्त रफ़्तार से.

वहीँ कुलगाम की रहने वाली 28 साल की निगहत साहिबा कश्मीर की उभरती हुई शायरा हैं.निगहत बताती हैं कि सियासी हालात और शायरी पर उसके प्रभाव के बारे में निगहत की राय थोड़ी अलग है.
वो कहती हैं, मैंने जानबूझकर इस बात की कोशिश नहीं कि मैं इस बारे में लिखूं क्योंकि हमारी सियासी समस्याएं वक़्ती होती हैं. शायरी में इन विषयों को जगह नहीं मिलनी चाहिए. हाँ अगर आपको कांटे चुभते हैं तो ज़ाहिर है दर्द होगा ही, आप महसूस भी करेंगे और फिर न चाहते हुए भी आपकी शायरी में वो चीज़ें आ ही जाएंगी.

 

आपको बता दें कि शायरी के अलावा गायकी के क्षेत्र में भी कश्मीरी महिलाएं अपने फ़न का लोहा मनवा रही हैं. 35 साल की परवीन आज़ाद के भी कई एलबम आ चुके हैं. परवीन कहती हैं कि जब उन्होंने गाना शुरु किया था तो घर में सभी ने उनका विरोध किया, लेकिन उन्होंने किसी की भी परवाह किए बग़ैर अपना गाना जारी रखा.

पेश है इन माहिर शायराओं की कुछ दिलकश अल्फाज़,
‘हमारे ख़्वाब अजब कहकशां बनाते हैं, ज़मीन को तारों भरा आसमां बनाते हैं.
मैं भूल जाती हूं उनकी कहानियां कितनी, ज़रा सी बात को वो दास्तां बनाते हैं.

‘क़दर अब तक तेरी तारीख़ ने जानी ही नहीं, तुझ में शोले भी हैं बस अश्क़-फ़शानी ही नहीं.
तू हक़ीक़त भी है, दिलचस्प कहानी ही नहीं, तेरी हस्ती भी है एक चीज़, जवानी ही नहीं.’