नई दिल्ली : 2011 की जनगणना के मुताबिक देश में मुसलमानों की आबादी 14.2% है और आबादी के अनुपात में प्रतिनिधित्व की बात करें तो इस हिसाब से 545 सांसदों वाली लोकसभा में 77 मुसलमान सांसद होने चाहिए. लेकिन किसी भी लोकसभा में मुस्लिम सांसदों की संख्या इस आंकड़े को नहीं छू पाई है. सवाल ये है कि जब समाज के दबे कुचले तबके को उसकी आबादी के अनुपात में लोकसभा में प्रतिनिधित्व दिया गया है तो फिर मुस्लिम समुदाय को इस फॉर्मूले से क्यों बाहर रखा गया है. साल 2006 में आई सच्चर कमेटी की रिपोर्ट साफ तौर पर कहती है कि देश में मुसलमानों की हालत दलितों से बदतर है. अगर दलितों को उनकी आबादी के हिसाब से लोकसभा में मिला हुआ है तो फिर मुसलमान इस हिस्सेदारी से वंचित क्यों हैं.
8वीं लोकसभा में 46 मुस्लिम सांसद चुनकर आए थे. जो उच्चतम मुस्लिम प्रतिनिधित्व था। वहीं, 2014 में मुस्लिम सांसदों की संख्या घटकर 22 रह गई. बाद में 2018 में उत्तर प्रदेश के कैराना लोकसभा सीट पर उपचुनाव में राष्ट्रीय लोक दल के टिकट पर तबस्सुम हसन की जीत से ये संख्या बढ़कर 23 हो गई. लोकसभा की 80 सीटों वाले उत्तर प्रदेश से 2014 के आम चुनाव में एक भी मुसलमान सांसद नहीं जीता था. पहली लोकसभा में मुस्लिम सांसदों की संख्या महज़ 21थी. तब लोकसभा के कुल सदस्यों की संख्या 489 थी. उस वक़्त लोकसभा में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व 4.29% था.
16वीं लोकसभा में देश के सिर्फ 7 राज्यों से मुसलमानों का प्रतिनिधित्व हुआ था. सबसे ज्यादा 8 सांसद पश्चिम बंगाल से जीते थे, बिहार से 4, जम्मू और कश्मीर और केरल से 3-3, असम से 2 और तमिलनाडु और तेलंगाना से एक-एक मुस्लिम सांसद जीत कर लोकसभा में पहुंचा था. इनके अलावा केंद्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप से एक सांसद जीता था. इन 8 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश में देश के करीब 46% मुसलमान रहते हैं. इनमें लोकसभा की 179 सीटें आती है. देश के बाक़ी 22 राज्यों और 6 केंद्र शासित प्रदेशों से लोकसभा में मुस्लिम प्रतिनिधित्व नहीं है.
जिन 28 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 54% मुसलमान रहते हैं उनमें से एक भी मुस्लिम सांसद नहीं जीता था जबकि इन राज्यों में लोकसभा की 364 सीटें हैं. वहीं पिछली लोकसभा में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व आजादी के बाद सबसे कम रहा है. देश की आजादी और बंटवारे के करीब 67 साल बाद हुए 2014 के लोकसभा चुनाव में सबसे कम मुस्लिम सांसदों का जीतना राजनीति में में उनके तिरस्कार की तरफ इशारा करता है.
लोकसभा का कार्यकाल खत्म होने के वक्त कुल 23 मुस्लिम सांसद थे जो कि 545 सदस्य वाली लोकसभा में 4.24% बैठता है. अब 17वीं लोकसभा में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व बढ़ेगा या घटेगा. यह तो चुनावी नतीजे बताएंगे. लेकिन ये मुद्दा लोगों की नज़र जरूर रहना चाहिए.
साभार : बीबीसी हिन्दी डॉट कॉम