हिंदुस्तान जैसे बहु-सांस्कृतिक देश में ‘वन नैशन, वन कल्चर’की आक्रामक हिमायत करने वाले लोग अपनी ऐसी विचारधारा और कार्यों को थोपने की कोशिश कर रहे हैं, जो इस्लाम के बुनियादी सिद्धांतों के खिलाफ है।
योग को लेकर किसी तरह का विवाद नहीं खड़ा किया जाना चाहिए. हर धर्म और वर्ग के लोगों को योग दिवस को प्रोत्साहित करना चाहिए, मगर इसके लिए जरूरी है कि वह रहमत बने, जहमत नहीं।
ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना यासूब अब्बास ने भी कहा कि योग को मजहब से जोड़कर नहीं देखना चाहिए। इसका ताल्लुक सिर्फ शरीर से है।
जो लोग योग को मजहब से जोड़कर देखते हैं, वे दरअसल इंसानियत को बीमार देखना चाहते हैं। मैंने खुद केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के साथ लखनऊ में योग किया था।
बहुत से इस्लामी मुल्कों ने अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को अपनाया है और वहां इसे हर साल जोश-ओ-खरोश से मनाया जाता है। आज हजारों मुसलमान योग करते हैं। योग के दौरान किए जाने वाले मंत्रोच्चार पर मौलाना अब्बास ने कहा कि मुसलमान सिर्फ अल्लाह की इबादत करते हैं। योग को इबादत समझकर नहीं किया जाना चाहिए।
दुनिया के प्रमुख इस्लामी शोध संस्थानों में शुमार की जानी वाली शिबली अकैडमी, आजमगढ़ के नाजिम मौलाना इश्तियाक अहमद जिल्ली ने कहा कि योग दरअसल एक कसरत है और उसे उसी तरह से लिया जाना चाहिए। यह सच है कि कोई भी चीज जो हमारे बुनियादी अकायद (आस्था) से टकराती है, वह हमें कुबूल नहीं है।
इस सवाल पर कि योग को लेकर मुस्लिमों की सोच पर अक्सर सवाल खड़े किए जाते हैं। जिल्ली ने कहा कि हिन्दू कौम बहुत फराख़ दिल (बडे़ दिल वाली) है। महान दार्शनिक और वैज्ञानिक अलबैरूनी ने हिंदुस्तान में रहकर तमाम हिंदू कौम और उनके मजहब को बेहद करीब से देखा है।
उसकी किताब ‘अलबैरूनीज़ इंडिया’ में हिंदू मजहब की सहिष्णुता की जबर्दस्त तारीफ की गई है। योग को लेकर मुस्लिमों की सोच के बारे में जिस तरह की बातें की जा रही हैं, वे भी सही नहीं हैं।