मुस्लमानों के लिये लम्हा फ़िक्र

अज़ीम उल-शान ख़ूबसूरत मस्जिद हयात बख़शी बेगम गैर आबाद सुलतान क़ुली क़ुतुब शाह के इबतिदाई दौर यानी 1518 -से आख़री दौर यानी औरंगज़ेब आलमगीर के दूसरे मुहासिरा गोलकुंडा 1687 -तक जो गुमबदें और मस्जिदें यहां पर तामीर हुईं इन में से सब से ज़्यादा अज़ीम उल-शान और ख़ूबसूरत मस्जिद का हयातबख़शी बेगम को एज़ाज़ हासिल है । जो अपने नक़्श-ओ-निगार और से डोल मीनारों की वजह से फ़न तामीर का आला नमूना है ।

इस की छत में नीलगों रंग के जो बेल बूटे हैं । इतने ही ताज़ा नज़र आते हैं गोया कल ही किसी ने रंग किया है । इस की बैरूनी कमानों के कार पर गच में जो नक़्श किए गए हैं उन पर मेअम्मारों ने गुल कारीयां भी बनादी हैं ।मक़ाबिर क़ुतुब शाही की सब से बड़ी और बहतरीन मस्जिद है । इस की चौड़ाई 76 फ़ुट लंबाई 51 फुट है । महिकमा आरक्योलोजी ने इस मस्जिद को The Great Mosque का नाम दिया है । इस मस्जिद में जाएनमाज़ की ज़रूरत नहीं पड़ती ।

फ़र्श पर ही एसा लाजवाब डिज़ाइन किया गया बिना जाएनमाज़ के नमाज़ अदा की जा सकती है । हक़ीक़त में हम इस मस्जिद की तारीफ को तहरीर में नहीं लासकते । महिकमा आरक्योलोजी का हमेशा एक सेकोरेटी गार्ड रहता है । मस्जिद बहुत अच्छी साफ़ सुथरी हालत में है । अगर किसी ने इस मस्जिद को नहीं देखा तो क्या देखा ? ये मस्जिद हयात बख़शी बेगम की गुमबद के रूबरू है ।।