नई दिल्ली, 2 जून: आला तालीम में मुस्लिम तलबा की मुसलसलत घटती भागीदारी का अहम वजह ऐसे तलबा के वालदैन की गरीबी है। ज्यादातर तलबा के घर वाले वाले आला तालीम के लिए फीस अदा करने की हालत में नहीं होते हैं।
इसलिए जरूरी है कि हुकूमत यह यकीनी करे कि फीस नहीं अदा कर पाने की वजह से कोई बच्चा आला तालीम हासिल करने से मरहूम न हो।
अक्लीयतों की तालीम के लिए कायम कौमी निगरानी कमेटी (एनएमसीएमई) ने एक रिपोर्ट में इंसानी वसाएल की वज़ारत (Ministry of Human Resources) से यह सिफारिश की है।
वज़ारत को सौंपी गई इस रिपोर्ट के मुताबिक इंटरमीडिएट के बाद मुल्क में जहां आम तबके के 100 में 18 बच्चे आला तालीम के लिए दाखिला ले रहे हैं, वहीं मुस्लिम तबके से सिर्फ 9.5 बच्चे ही कालेजों तक पहुंच पाते हैं।
इसका एक अहम वजह मुस्लिम मुआशरा (समाज) की गरीबी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि मर्कज़ी हुकूमत Scheduled caste के बच्चों का सरकारी तालीमी इदारो में पूरी तरह फीस माफ कर देती है और निजी कालेजों में भी उन्हें सीधे फीस नहीं देनी पड़ती।
उसी तरह मुस्लिम बच्चों को भी आला तालीम के लिए यह सहूलत फराहम की जानी चाहिए। दाखिला के वक्त किसी बच्चे को सिर्फ फीस जमा नहीं करा पाने की वजह से पढ़ने से मरहूम नहीं किया जाना चाहिए।
रिपोर्ट में कहा गया है कि निजी कालेजों में दाखिला पाने वाले मुस्लिम तलबा को दाखिला के वक्त फीस न लेकर सरकार से फीस के रिफंड का इंतेज़ाम किया जाना चाहिए।
मर्कज़ी हुकूमत इसके लिए अक्लियती बहबूद की वज़ारत को मुनासिब रकम दस्तयाब कराए।
इससे मुताल्लिक कालेज रियासती हुकूमतों के ज़रिये से वज़ारत से ऐसे तलबा की फीस का रिफंड हासिल करें जैसा कि अभी दर्ज फहरिस्त ज़ात (Scheduled caste) के तलबा के मामले में किया जा रहा है।
इंसानी वसाएल की वज़ारत (Ministry of Human Resources) के ज़राए के मुताबिक इस रिपोर्ट पर गौर किया जा रहा है।
मुम्किन है कि अगले साल इंतेखाबात को देखते हुए अक्लियतों (Minorities) के मुफाद में रिपोर्ट में दी गई कुछ सिफारिशों को हुकूमत कुबूल कर उन्हें जल्द ही लागू करने का ऐलान कर दे।