मुस्लिम महिलाओं के साथ सरकारी अस्पतालों में किया जाता है भेदभाव

बेहरमपाड़ा निवासी 30 वर्षीय रूही फातिमा ने पिछले दिसंबर महीने में बांद्रा के पश्चिमी इलाके में मौजूद एक सरकारी अस्पताल में एक बच्चे को जन्म दिया, लेकिन उन्हें तब बहुत झटका लगा जब उनकी इलाज करने वाली स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉक्टर ने उनको प्रसव पीड़ा के दौरान थप्पड़ मारा। डॉक्टर के अभद्र व्यवहार से रूही काफी दुखी थी। इसी दौरान दूसरी मुस्लिम महिलाओं से पता चला कि मुसलमानों के प्रति इस तरह का दुर्व्यहार यहां आम है।

इंडियन एक्सप्रेस अखबार के मुताबिक, दो अलग-अलग रिपोर्टों से यह बात सामने आई है कि सरकारी स्वास्थ्य संस्थानों में मुस्लिम समुदाय के महिलाओं के खिलाफ इसी तरह के भेदभाव का मिलना आम हो चला है। अखबार ने यह बात अल्पसंख्यक मंत्रालय की तरफ से और दूसरा सेहत नाम की एक एनजीओ की एक रिपोर्ट के हवाले से कहा है। दरअसल, यह रिपोर्ट मुसलमानों के बहुअयामी विकास कमीशन की तरफ से आया था जिसे राज्य सरकार ने रिसर्च सेंटर फॉर वुमन स्टडी, एसएनडीटी और उन 250 मुस्लिम परिवारों और शादीशुदा महिलाओं से इंटरव्यू करने के बाद तैयार किया गया था। इसे मुंबई की 77 झुग्गी बस्तियों की रहने वाली थीं।

इस रिपोर्ट में पाया गया कि मुस्लिम महिला के साथ बेहद गलत दुर्व्यवहार किया जाता है। इस अनुसंधान टीम की एक सदस्य पारुल खानपाड़ा ने बताया कि मुसलमानों के सात इस तरह के व्यवहार मुसलमानों के साथ सिर्फ अस्पतालों में ही नहीं होते, बल्कि ऐसा शैक्षिक संस्थानों में भी आम है। उन्होंने उसके आग कहा कि दो महिलाओं को नवजात शिशुओं के पंजीकरण के दौरान अपमानित किया गया। उन्होंने कहा कि अक्सर मुस्लिम महिलाओं को बच्चे पैदा करने के लिए ताना मारा जाता है।

इसी तरह का मिलता-जुलता एक रिपोर्ट सेहत एनजीओ ने 85 झुग्गी बेस्तियों में रहने वाली महिलाओं का इंटरव्यू करने के बाद सामने आया। इस इंटरव्यू में 44 मुस्लिम और 41 गैर-मुस्लिम महिलाएं शामिल थीं। इस इंटरव्यू में पाया गया कि जब गरीब, महिला और मुस्लिम इलाज के लिए आते हैं तो उनको तीन गुणा बोझ समझा जाता है।

बेबाक कलेक्टीव से जुड़ी हसीना खान कहती हैं कि उनके साथ भी इस तरह का व्यवहार किया गया, जिसकी शिकायत उन्होंने राज्य अल्पसंख्यक आयोग से की थी, लेकिन इस पर किसी भी प्रकार का कार्रवाई नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि मुस्लिम बस्तियों को स्वास्थ्य सुविधाओं से जानबुझकर वंचित रखा जाता है। वहीं बांद्रा पूर्व की रहने वाली 34 वर्षीय रेशमा शेख कहती हैं कि साल 2007 में उन्होंने अपने बच्चे के जन्म के समय बीएमसी अस्पताल गई। तब मेरा चेहरे का एक हिस्सा आंशिक तौर पर लकवा ग्रस्त हो गया था। उन्होंने कहा कि  मैं दर्द की वजह से चिल्ला रहा थी। तभी एक महिला डॉक्टर ने मेरे गाल पर थप्पड़ मारा। थप्पड़ की वजह से मेरा चेहरा एक सप्ताह सूजा रहा। जब तक मुझे अस्पताल से छूट्टी नहीं मिल गई तब तक यह बात मैंने अपने परिवारों वालों को नहीं बताई।

सेहत के अध्ययन में पाया गया कि दुर्व्यवहार की घटनाएं आर्थिक रूप से वंचित महिलाओं साथ आम बात है। जबकि गैर-मुसलमानों को लंबे समय तक इंतजार कराया जाता ताकी नर्सों को रिश्वत मिले। सेहत एनजीओ से जुड़ी संगीता रेगे कहती हैं कि सार्वजनिक क्षेत्र के अस्पताल अधिकारहीन समुदायों का शोषण करता है। उन्होंने कहा कि यह बात सच्चर कमेंटी की रिपोर्टस से भी सामने आती है।