एसेम्बली इंतिख़ाब में अपनी ताकत का मुजाहिरा करने के लिए मुसलमानों को चाहिए की वो मसलकी एख्तिलाफ़ात का खत्मा करते हुये इत्तिहाद का मुजाहिरा करें तभी हम मुस्लिम मेंबरान एसेम्बली की तादाद में इजाफा कर सकते हैं। इसके लिए अभी से ही मुस्लिम दानिश्वरों को ठोस पॉलिसी मरतब करने की ज़रूरत है ताकि इस का फाइदा एसेम्बली इंतिख़ाब में मुस्लिम उम्मीदवारों को मिल सके। इस सिलसिले में जेयूडी लीडर सैयद महमूद अशरफ ने कहा की ये बात अपनी जगह बिलकुल दुरुस्त है की ज़ात-पात की सियात से मुसलमानों का बहत बड़ा नुकसान हुआ है। खास तौर पर बिरादरी वाद की सियासत में मुसलमानों की सियासी कूवत को कमजोर करने का काम किया है। और यही वजह है की हर एसेम्बली इंतिख़ाब में मुस्लिम मेंबरान एसेम्बली की तादाद में इजाफा की बजाय कमी दर्ज़ की जा रहाई है जो जम्हूरियत के लिए खतरे की अलामत है।
हमें अभी से ही इस मामले पर गौर व फिक्र करने की जरूरत है की आखिर हम से कहाँ गलतियाँ हो रही हैं। उन्होने कहा की इस रियासत में 16 फीसदी दलितों की आबादी है और 16 फीसद यादव की, जबकि इस तबका से एसेम्बली में पहुँचने वाले मेंबरान एसेम्बली की तादाद तकरीबन 30 से ज़्यादा होती है। वहीं हमारी आबादी कम अज़ कम 18 फीसदी है तो हम 16 सीट पर ही आकर क्यो सिमट जाते हैं। आखिर इसके लिए कौन जिम्मेदार है। मिस्टर अशरफ ने मजीद कहा की जब तक मुसलमानों के अंदर इत्तिहाद का जज्बा पैदा नहीं होगा, हम बिहार में मजबूत सियासी कूवत नहीं बन सकते और तब तक हमारी सियासी पसमनदगी दूर नहीं होगी, ये तबका ज़िंदगी के किसी भी शोबा में तरक़्क़ी की मंज़िल तय नहीं कर सकता है। अफसोस इस बात की है की तमाम सेकुलर लीडरान ने मुसलमनाओं का न सिर्फ इस्तहसाल की है बल्कि इसे वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल करते हुये अपनी सियासी दूकानदारी चमकाई है। हालात का तक़ाज़ा यही है की अगर ये क़ौम अब भी अपनी सोंच में तबदीली नहीं लायी तो हमारी आने वाली नस्लें हमें कभी माफ नहीं करेंगी क्योंकि इस रियासत में मुसलमान दूसरी सब से बड़ी आबादी है लेकिन सियासी तौर पर हम दलितों से भी बदतर बना दिये गए हैं।