नई दिल्ली: समान नागरिक संहिता पर सरकार की पहल के बाद मुस्लिम संगठनों के विरोध को देखते हुए अब दूसरे अल्पसंख्यक समुदाय और जाती-जनजाती भी इसके विरोध में आगये हैं। लिंगयात, बुद्धिस्ट के साथ-साथ पिछड़ी जातियों के प्रतिनिधियों ने समान नागरिक संहिता का विरोध करते हुए कहा कि यह संविधान द्वारा प्राप्त मौलिक अधिकार के विरुद्ध है। साथ ही उन्होंने यह भी इल्ज़ाम लगाया कि इससे उनकी अस्मिता को भी ख़तरा है।
गुरुवार को दिल्ली में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस को संबोधित करते हुए दलित आदिवासी और बुद्धिस्टों के प्रतिनिधियों ने एक सुर में इसका विरोध किया है।उन्होंने इसको यूपी में होने वाले चुनाव की रणनीति करार दिया। आगे उन्होंने कहा की समान नागरिक संहिता से मुसलमानों का ही मुद्दा नहीं है बल्कि पुरे देश में 100 से जयदा ऐसे धर्म हैं जो हिन्दू धर्म में विश्वास नहीं रखते उनका भी मुद्दा है।
राष्ट्रीय आदिवासी एकता परिषद के राष्ट्रीय संयोजक प्रेम कुमार गेडाम ने इसका इसका विरोध करते हुए कहा कि जनजातीय समुदाय की अपनी एक अलग सांस्कृतिक पहचान और अलग रिवाज है। ये लोग अपने रिवाजों को ही मानते है और मानेंगे ऐसे में समान नागरिक संहिता इनके लिए खतरा है। उन्होंने में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले का हवाला देते हुए कहा कि आदिवासी हिन्दू नहीं है।
आगे उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि समान नागरिक संहिता को लागू करने का कोई भी कदम देश की एकता और अखंडता के लिए गंभीड़ खतरा हो सकता है। भारत में 6,743 समुदाय अलग अलग पचान के साथ मौजूद हैं।बुद्धिष्ट अंतराष्ट्रीय केंद्र के प्रॉ. बाबा हेस्ट ने अपनी इन्ही बातों का समर्थन किया और कहा की समान नागरिक संहिता की आड़ वर्नाशर्म को लागु करने की शाजिश है।
संयुक्त बयान देते हुए दोनों ने कहा कि राजग सरकार द्वारा समान नागरिक संहिता पर जो पहल की गयी है जो की भाजपा के 2014 आम चुनाव के चुनावी घोषणा पत्र में शामिल था। यह संवैधानिक अधिकार पर गंमभीड़ प्रश्न उठता है।उन्होंने अंत में कहा कि हम उम्मीद करते हैं की सरकार सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एफीडेविट को भी वापिस लेगी और आगे देश के शांति को भंग नहीं करेगी।