“मैं अमरीका पे भरोसा नहीं करता”

हवाना: बीसवीं शताब्दी के सबसे शानदार नेताओं का अगर ज़िक्र होगा तो उसमें फ़िडेल कास्त्रो का नाम ज़रूर आएगा. एक ऐसा क्रांतिकारी जिसने अपने जज़्बे से वो काम कर दिखाया जो नामुमकिन सा लगता था. 1950 के दशक में क्यूबा की क्रान्ति में जिस तरह उन्होंने और चे गुइवेरा ने भूमिका निभायी वो कमाल रही, इतना ही नहीं उसके बाद जब अमरीका ने क्यूबा पर “बे ऑफ़ पिग्स” के ज़रिये क़ब्ज़ा करने की कोशिश की तो उन्हें धूल चटा दी. 13 अगस्त, 1926 को पैदा हुए इस क्रांतिकारी ने क्यूबा को अपने मज़बूत कन्धों पर संभाला है. क्यूबा मिसाइल क्राइसिस के वक़्त उनका रोल एहम रहा और बाद में NAM में भी वो प्रमुख भूमिका में रहे. भारत के क़रीबी दोस्त माने जाने वाले फ़िडेल कास्त्रो ने हर मोर्चे पर भारत का साथ दिया. वो अमरीकी चालाकी को हमेशा अच्छी तरह समझते थे और अब जबकि अमरीका से उनके भाई राउल कास्त्रो ने संबंध सुधर लिए हैं तब भी वो यही कहते हैं “मैं अमरीका पे भरोसा नहीं करता”. उनके बारे में कहा जाता है कि उन्होंने क़रीब 50 साल क्यूबा की सत्ता संभाली लेकिन उन्होंने कभी अमरीकी राष्ट्रपति से हाथ नहीं मिलाया.
आज वो 90 साल के हो गए हैं लेकिन इस उम्र में भी नौजवान पीढ़ी के लिए एक हौसले और जज़्बे का नाम हैं और जो लोग मार्क्सिस्ट-लेनिनिस्ट फ़लसफ़े के क़रीब हैं उनके लिए चे गुइवेरा और फ़िडेल कास्त्रो हीरो हैं.