मैं कोलकता और बंगलादेश के सिवाए कहीं और नहीं रह सकती: तस्लीमा नसरीन

कोलकता, २४ नवंबर (पीटीआई) कोलकता में बुनियाद परस्तों के ज़बरदस्त एहतिजाज के बाद मुतनाज़ा मुसन्निफ़ा को कोलकता छोड़ना पड़ा था और इस वाक़िया को पूरे पाँच साल गुज़र चुके हैं लेकिन उनका कहना है कि वो आज भी कोलकता वापस जाने की मुंतज़िर हैं।

दिल्ली से पी टी आई से बात करते हुए उन्होंने कहा कि वो उस दिन की मुंतज़िर है जहां हुकूमत मग़रिबी बंगाल उसे कोलकता वापस आने की इजाज़त देगी। में बंगाली हूँ, मैं या तो मग़रिबी बंगाल में रह सकती हूँ या बंगला देश में। इसके इलावा और कहीं नहीं।

बदक़िस्मती से उसे दोनों ही मुक़ामात पर रहने की इजाज़त नहीं दी जा रही है। इसने कहा कि मग़रिबी बंगाल हुकूमत उसकी दरख़ास्तों का कोई जवाब नहीं दे रही है। कोलकता को वो अपना वतन सानी कहती है। इसके इलावा उसे दुनिया का कोई दूसरा शहर पसंद नहीं।

पाँच साल क़बल 22 नवंबर 2007 को तस्लीमा नसरीन के वीज़ा की तजदीद के ख़िलाफ़ ज़बरदस्त एहतिजाजी मुज़ाहिरे हुए थे और उसे कोलकता छोड़ने पर मजबूर होना पड़ा था। इसके बाद से उसे दिल्ली के नामालूम मुक़ाम पर ठहराया जाता रहा और हिदायत की गई थी कि वो अवामी ज़िंदगी से दूर रहें और अवामी जलसों में भी शिरकत ना करें।

यहां मुझे अकेलापन महसूस होता है। मेरा कोई दोस्त, मूनिस-ओ-ग़मख़वार नहीं है। इस तरह की ज़िंदगी जीते हुए में कब तक ज़िंदा रहूंगी? वो अपने हम मिज़ाज लोगों से राबिता क़ायम करने के लिए ट्विटर का इस्तेमाल करती है। इस तरह दुनिया भर में कम-ओ-बेश 45000 मद्दाह मौजूद हैं जिनके साथ वक़तन फ़वक़तन पैग़ामात का तबादला होता रहता है।

यहां इस बात का तज़किरा ज़रूरी है कि तस्लीमा नसरीन को 1994 में उस वक़्त बंगला देश छोड़ना पड़ा था जब इसके नावल लज्जा ने ज़बरदस्त तनाज़ा पैदा कर दिया था जिसने मुसलमानों के मज़हबी जज़बात मजरूह कर दिए थे। यूरोप में दस साल जिलावतनी की ज़िंदगी गुज़ारने के बाद तस्लीमा नसरीन 2004 में कोलकता आ गई।

मैग्सेसे ऐवार्ड हासिल करने वाली दीगर मुसन्निफ़ा महा श्वेता देवी ने इसका दिफ़ा करते हुए कहा कि एक मुसन्निफ़ा होने के नाते तस्लीमा को लिखने की आज़ादी क्यों नहीं है?