मैं 2 मिनट की कार्रवाई की सज़ा 22 साल से भुगत रहा हूँ

मैं ने ज़ुलम के ख़िलाफ़ जज़बात की शिद्दत के साथ जो कार्रवाई दो मिनट में की थी उस की सज़ा गुज़शता 22 साल से भुगत रहा हूँ और पता नहीं इस का ख़मयाज़ा मुझे मज़ीद कितना अर्सा भुगतना पड़े । ये अलफ़ाज़ साबिक़ कांस्टेबल मुहम्मद अबदुलक़दीर के हैं जो उन्हों ने एडीटर सियासत जनाब ज़ाहिद अली ख़ां से मुलाक़ात के वक़्त इंतिहाई जज़बाती अंदाज़ में अदा किए ।

अबदुलक़दीर इस वक़्त गांधी हॉस्पिटल में ज़ेर ईलाज हैं जहां डाक्टरों ने उन के सीधे पीर को काट देने का मश्वरा दिया था । ये पैर इस क़दर ज़ख़मी होगया है और इस की हालत इतनी बुरी है कि शायद डाक्टर इस के ईलाज से मायूस हो चुके हैं। डॉक्टर्स की मायूसी के बावजूद अबदुलक़दीर पुर अज़म हैं और वो चाहते हैं कि इस का ईलाज करवाएं । अबदुलक़दीर ने जनाब ज़ाहिद अली ख़ां से मुलाक़ात के वक़्त कहा कि वो अपनी ज़िंदगी के आख़िरी अय्याम अपने बीवी बच्चों और अफ़राद ख़ानदान के साथ सुकून से गुज़ारना चाहते हैं ।

उन की ज़िंदगी के 22 तवील साल उन्हों ने जेल में गुज़ार दिए हैं। ये उन की ज़िंदगी का असासा बन सकते थे ताहम 22 साल का तवील अर्सा जेल की सलाखों के पीछे गुज़ारने के बावजूद भी उन की रिहाई के कोई आसार नज़र नहीं आते और ना कोई इन का पुर्साने हाल है। अबदुलक़दीर ने बताया कि जेल के 22 सालों में उन्हों ने क़यामत ख़ेज़ मज़ालिम सहे हैं।

कई मौक़ों पर तो एसा महसूस हुआ कि वो मौत के करीब पहूंच गए हैं ताहम अल्लाह तबारक-ओ-ताला का ख़ास करम और हुज़ूर अकरम ई का सदक़ा है कि वो अभी भी ज़िंदा हैं। उन्हें एसा महसूस होता है कि जब कभी उन्हें मौत करीब नज़र आने लगती है कोई ग़ैबी ताक़त उन को बचा लेती है । जनाब ज़ाहिद अली ख़ां से मुलाक़ात के वक़्त अबदुलक़दीर कई मौक़ों पर जज़बात से बे क़ाबू होगए और ख़ुद पर हुए मज़ालिम की दास्तान बयान करते हुए बे इख़तियार उन की आँखों से आँसू रवां होगए ।

इस मुलाक़ात में अबदुल क़दीर पहले वाले अबदुल क़दीर क़तई दिखाई नहीं दे रहे थे जो सब्र-ओ-इस्तिक़ामत की तस्वीर बने रहते थे इस बार एसा लग रहा था कि वो टूट चुके हैं और शायद अपनी ज़िंदगी से मायूस भी । बार बार उन की आँखों से आँसू बह रहे थे । एक मौक़ा पर तो उन्हें अपने बटहते आँसूओं को रोकना भी मुश्किल होगया था ।

अबदुल क़दीर ने बताया कि उन्हें जेल में कई मर्तबा ज़द-ओ-कोब का भी निशाना बनाया गया । उन के दोनों पैर चीर कर लोहे की सलाखों से उन के पाउं पर मार पीट भी की गई थी जिस की वजह से आज उन का सीधा पैर तक़रीबन सड़ गया है और इस में उसे ज़ख़म पड़ गए हैं जिसे साफ़ करने की कोशिश की जाय तो हाथ अन्दर चला जाता है ।

अबदुल क़दीर ने बताया कि ज़िंदगी से अब उन की कोई ख़ाहिश बाक़ी नहीं रह गई । वो कोई बड़ा आदमी बनने का ख़ाब नहीं देख रहे हैं और ना उन्हें दौलत की ख़ाहिश है वो सिर्फ़ रिहाई चाहते हैं ताकि अपनी ज़िंदगी के बचे कुचे अय्याम अपने अफ़राद ख़ानदान के साथ कुछ सुकून के साथ गुज़ार सकें। उन्हों ने कहा कि मिल्लत के हक़ में जो कार्रवाई उन्हों ने सिर्फ दो मिनट में की थी उस की सज़ा के लिए 22 साल का अर्सा बहुत तवील है ।

ज़िंदगी का जो कीमती वक़्त उन्हों ने जेल की चार दीवारी में गुज़ारा है वो उन्हें कोई नहीं लौटा सकता । इस दौरान उन पर जो मज़ालिम हुए हैं शायद दूसरा कोई बर्दाश्त नहीं कर सकता था । इस के साथ उन के बच्चों ने जिस सब्र का मुज़ाहरा किया है वो क़ौम को एहसास दिलाने के लिए काफ़ी है । उन की अहलिया ने इस दौरान जो सब्र किया है और अलालत के दौरान उन्हों ने जिस तरह उन की ख़िदमत की है यही उन की ज़िंदगी का सहारा है ।

उन्हों ने बताया कि जेल की चार दीवारी के अंदर उन्हों ने 22 साल के अर्सा में कई कैदियों को ज़िंदगी के उसूल सुखाय हैं और उन्हें अच्छा इंसान बनने रहनुमाई की कोशिश की है लेकिन अफ़सोस की बात ये है कि आज उन्हें ही फ़रामोश कर दिया गया है । कोई इन का पुर्साने हाल नहीं है। हुकूमतों से कोई ये सवाल करने वाला नहीं है कि 22 साल कैद के बावजूद उन्हें रिहा क्यों नहीं किया जाता ।

कोई हुकूमत पर दबाउ डालते हुए उन की रिहाई के लिए संजीदगी से कोशिश करने वाला नहीं है । हर कोई आता है और हमदर्दी जताकर एसा समझता है कि इस ने अपना फ़र्ज़ अदा करलिया है ।

ज़िंदगी से कोई ख़ाहिश नहीं सिर्फ रिहाई चाहता हूँ

मेरे बच्चों और बीवी का सब्र मेरी ज़िंदगी का असासा

कई ममालिक से इमदाद आई जो मुझे नहीं मिली

डॉक्टर्स ने सीधा पैर काटने का मश्वरा दिया है

एक बच्ची की शादी होगई दूसरी की फ़िक्र सताती है