मौत की ख्वाहिश को सरकार ने बताया खुदकुशी

मौत की ख्वाहिश का मुद्दा एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट के सामने है। सवाल है कि क्या कोमा में चले गए मरीज के Life Saving Equipment हटाने की इजाजत डॉक्टरों को दी जा सकती है या नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने मौत की ख्वाहिश का हक मांगने वाली नौ साल पुरानी मुफाद ए आम्मा की अर्जी पर सभी फरीको की बहस सुनकर अपना फैसला महफूज़ रख लिया है। हुकूमत ने मौत की ख्वाहिश की इजाजत को खुदकुशी के बराबर बताते हुए इसका खुलकर एहतिजाज किया है।

गैर सरकारी तंज़ीम कॉमनकाज ने सुप्रीम कोर्ट में Public Interest Litigation दाखिल कर मौत की हालात में पहुंच गए मरीज को मौत की ख्वाहिश का हक दिए जाने की मांग की है। यह दरखास्त 2005 से सुप्रीम कोर्ट में ज़ेर ए गौर है। इस बीच सुप्रीम कोर्ट 37 साल से बिस्तर पर पड़ी नर्स अरुणा शानबाग के Life Saving Equipment हटाने और उसे सुकून से मरने की इजाजत मांगने वाली दरखास्त खारिज कर चुका है।

कॉमनकाज की ओर से दायर दरखास्त पर नौ साल बाद तफ्सीली सुनवाई हुई। चीफ जस्टिस पी. सतशिवम की सदारत वाली तीन रूकनी बेंच ने मौत की ख्वाहिश के हुकूक पर बहस सुनने के बाद अपना फैसला महफूज़ रख लिया।

दरखास्तगुजार की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण की दलील थी कि कानून ये हक देता है कि किसी की ख्वाहिश के खिलाफ उसे कोई दवा या इलाज नहीं दिया जाएगा इस हुकूक में मौतकी ख्वाहिश का हुकूक शामिल है। अगर कोई शख्स पहले ही अपनी राय दे चुका हो कि अगर वह लाइलाज कोमा की हालात में पहुंच जाए तो उसके आर्टीफिशियल मेडिकल सर्पोट हटा दिए जाएं ताकि उसकी तकलीफ कम हो और वह सुकून से मर सके। ऐसा राज दे चुके शख्स के लाइलाज हालात में पहुंचने पर डॉक्टरों को उसके मेडिकल सपोर्ट हटाने की इजाजत मिलनी चाहिए।

यह हुकूक दिए जाने से न सिर्फ उस शख्स का दर्द कम होगा बल्कि उसकी जगह दूसरे जरूरतमंद मरीज को इलाज मिल पाएगा जिसके ठीक होने की उम्मीद है। हालांकि, हुकूमत ने दरखास्त का जोरदार मुखालिफत किया।

ईजाफी सॉलिसिटर जनरल सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि यह एक तरह से खुदकुशी की इजाजत मांगना है और कानून खुदकुशी की इजाजत नहीं देता। इसके इलावा डॉक्टर का काम मरीज की जान बचाने का है उसे जान लेने की इजाजत नहीं दी जा सकती।