रामपुर। शहर की दारुल कजा (शरई अदालत) में तारीख पर तारीख नहीं पड़ती। यहां कुरान और हदीस की रोशनी में दो-तीन माह में इंसाफ मिल जाता है। कोई भी मामला छह माह से ज्यादा नहीं चलता। दारुल कजा में ज्यादातर तलाक, विरासत, दहेज, लेन-देन और जमीन जायदाद के मामले आते हैं।
समय और पैसा खर्च करने के बाद भी लोग न्याय के लिए भटकते रहते है। वहीं, दारुल कजा में कुरान व हदीस की रोशनी में जल्द इंसाफ मिल जाता है। सबसे बड़ी बात इसका कोई पैसा नहीं लिया जाता। मुस्लिम मसाइल को हल करने के लिए मदरसा जाम-ए-उलूम फुरकानिया मिस्टन गंज में साल 1971 में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सचिव मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने दारुल कजा को कायम किया था। साल 2011 से यह मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड के तहत काम कर रही है।
दारुल कजा के सदर शहर इमाम मुफ्ती महबूब अली, नायब सदर मुफ्ती मुहम्मद मकसूद और काजी मौलाना मुहम्मद अय्यूब मामलों का निपटारा करते हैं। कई मामले खारिज भी कर दिए जाते हैं या मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड को भेज दिए जाते हैं। दारुल कजा के नायब सदर मुफ्ती मुहम्मद मकसूद कहते हैं कि दारुल कजा मुसलमानों का शरई इदारा है।
इसमें मुसलमानों के घरेलू और समाजी मसाइल कुरान और हदीस की रोशनी में तय किए जाते हैं। इसमें समय, पैसा बचने के साथ आखिरत भी दुरुस्त होती है। मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड की भी यही अपील है कि मुस्लिम अपने मसाइल दारुल कजा से तय कराएं।