इक़बाल रज़ा, कोलकाता। रमज़ान दुनिया भर के मुसलमानों के लिए मुक़द्दस व इस्लामिक कैलेंडर में सबसे सम्मानित महीना है क्योंकि क़ुरान इसी में नाज़िल हुआ था। रमज़ान करीम का अर्थ है “रमज़ान रहम वाला” है” जिसका असल मक़सद इबादत के ज़रिए जिस्म और रूह को पाक करना और तक़वा हासिल करना है इसलिए इससे ज़्यादा से ज़्यादा फ़ायदा उठायें क्योंकि यह Annual Exam की मानिंद है।
रमज़ान मग़फ़िरत का महीना के साथ आत्म-अनुशासन की एक संस्था (Institution) की तरह है जिसमें सब्र (Patience) की क्षमता को बढ़ाया जाता है जो चरित्र-निर्माण में सबसे महत्वपूर्ण है। यह तज़कियतुल-नफ़्स का मौसम है – विनम्रता, सहानुभूति और करुणा जैसे मूल्यों के ज़रिये दिल व खुद को पाक किया जाता है जिससे हर कोई आदर्श (Ideal) बनने के करीब पहुँच पाता है।
रमज़ान के मुल-मूल्य केवल मुसलमानों को प्रभावित करने के लिए नहीं हैं बल्कि सभी धर्मों के लिए हैं। मानवता के व्यापक विचारों पर आधारित ये मूल्य हमारी सह-अस्तित्व (Co-existence) की गुणवत्ता में सुधार के लिए है। हर बार जब मुसलमान इबादत करते हैं – तो याद दिलाया जाता है कि वे ‘रब्बिल मुस्लिमिन’ की इबादत नहीं करते हैं बल्कि ‘रब्बिल आलमीन’ की – जो तमाम कायनात का रब है। अपने वतन भारत में, इफ्तार व अन्य मौकों पर बड़ी संख्या में गैर-मुस्लिम दोस्तों, राजनेताओं व अधिकारियों का शामिल होना, इस महीने के प्रति श्रद्धा की भावना का एक शक्तिशाली उदाहरण है।
रमज़ान में मुसलमान अपनी सालाना ज़कात अदा करते हैं, जो एक प्रकार का “धार्मिक कर” है जो धन का 2.5% हिस्सा होता है ताकि गरीब या जरूरतमंद को भी मदद मिल सके। यह मुसलमानों के लिए एक धार्मिक दायित्व है, अभी के दौर में TV और Internet भी अभियान चलाते हैं ताकि लोगों को ज़कात के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। कुछ लोग स्वैच्छिक धर्मार्थ योगदान भी करते हैं जिसे सदक़ा कहते हैं, कुरान मुसलमानों को सदक़ा देने के लिए भी प्रोत्साहित करता है। इसमें सारे हमवतन गरीब व जरूरतमंद शामिल हैं।
मौजूदा हालात में, मेरे नज़रिये से इसे व्यापक रूप से विकास पर केन्द्रित होना चाहिए जो गरीबों व ज़रूरतमंदों को चंद दिनों की ज़रुरयात के बजाय हमेशा के लिए रोजगार व उनकी ज़रूरतों का साधन मुहैय्या करा सके जिसमे शिक्षा, स्वस्थ्य, लघु व्यापार, कौशल और (ब्याज मुक्त) माइक्रो-क्रेडिट तथा रोजगार सब शामिल हों। इसके लिए इस्लामी सहायता संगठन को गरीबी को कम करने के लिए दीर्घकालिक रणनीति बनानी चाहिए तथा मुस्लिम परोपकारी लोगों को इस्लामी धर्मार्थ को अधिक प्रभावी बनाने के तरीके खोजने चाहिए।
रमज़ान का एक अहम् पहलु आपसी सामंजस्य है। सुलह का एक हिस्सा माफी है जो नाइत्तेफाकि को ख़त्म कर यकज़हती (Unity) की तरफ जाती है। परिवारों और समूहों में प्रेमपूर्वक मिलना और हर चीज़ साझा करना रमज़ान का बुनियादी हिस्सा है जिससे समाज व देश मज़बूत होता है और आने वाली चुनौतियों को हल करने में सक्षम बनाता है। अगर मुसलमान एक महीने के लिए भी – मतभेदों को अलग कर सकते हैं तो इस कोशिश से वे एक सुरक्षित, स्थिर और सफल समाज व देश का निर्माण कर सकते हैं जिसमे शांति, न्याय और कानून का शासन संभव हो सकेगा।
रमज़ान ख़त्म होने पर मुसलमान हमेशा दुखी होते हैं क्योंकि यह इतना शानदार महीना है जो इतना पवित्र और पुरस्कारों से भरा होता है, लेकिन इसकी खूबसूरती यह है कि यह ईद-उल-फितर के हर्षोल्लास के साथ समाप्त होता है। रमज़ान के बाद ईद-उल-फितर, इस्लामी दुनिया में सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। यह खुशी का वक्त होता है जब लोग रोज़ा पूरा करने की मुबारकबाद देते हैं और अपने परिवार, रिश्तेदार व दोस्तों के साथ जश्न मनाते हैं, Gift देते हैं और एक साथ खाना खाते हैं।
मुझे उम्मीद है अल्लाह(swt) साल 2019 के रमज़ान की बरकत से दुनिया में अमन-ओ-आमान की तजल्ली फरमाएगा। आमीन!