रसूल स.व.कि गुसताखी करने वाले का मुंह टेड‌ होगया

क़ुरान‍ ओर हदीस गवाह‌ हैं कि रसुल स.व.कि शान में बेअदबी और गुस्ताख़ी करने वालों का दुनिया ही में बड़ा भयानक‌ अंजाम हुवा। अबूलहब और इस की बीवी उम ए जमीला की मौत उस की एक मिसाल है। आख़िरत(परलोक) में तो इस से भी बुरा हश्र और सखत‌ अज़ाब होगा। लेकिन अगर कोई अपने क़सूर पर शर्मींदा होकर माफ़ी मांग ले तो रसूल स.व. ने इस पर रहम करके माफ़ कर दिया।

हज़रत आरिफ़ रुमि अपनी मसनवी शरीफ़ में एक एसे ही रसूल कि शान में गुसताखी करने वाले का यूं जिक्र करते हैं
तर्जुमा: वो शख़्स जिस ने मुँह‌ चढ़ाकर तम्सखुर से(मज़ाक़ उड़ाते हुए) हज़रत अहमद स.व. का नाम मुबारक लिया (तो) इस का मुँह
टेडा का टेडा रह गया
तर्जुमा: वो आप की ख़िदमत में फिर आया (और कहा कि) या मुहम्मद( स.व.) (मुझे) माफ़ करदी जीए कि आप को इलम-ए-लदुन्नी
(अल्लाह कि तरफ से इलम)के अलताफ़ हासिल हैं
तर्जुमा: (मौलाना फ़रमाते हैं) जब अल्लाह ताला किसी की जिल्लत‌ को बेनिकाब करना चाहता है तो इस को पाक लोगों पर तान करने की तरफ़ माइल कर देता है।
यानी ये सब उस शख़्स की बुरे कामों का नतीजा होता है। इस के किसी गुनाह की सज़ा के तौर पर उस की अक़ल पर ये वबाल आता है कि वो किसी अल्लाह वाले को बुरा कहना और ताना देना शुरू करता है जिस की वजह से ज़िल्लत‍ ओर हलाकत और रुसवाई इस के हिस्से में आती है इस के ख़िलाफ़ मोलाना फ़रमाते हैं:

तर्जुमा: और जब ख़ुदा ताला किसी के एब छिपाना चाहता है (तो वो शख़्स) मायूब लोगों के एब पर भी कलाम नहीं करता।
यानी लोगों के उयूब‍ ओर कमियों से ज़बान बंद रखना और अल्लाह ताला की तौफ़ीक़ और इस की रहमत‍ ओर मेहरबानी की निशानी है
तर्जुमा: जब ख़ुदा ए बरतर हमारी मदद करना चाहता है (तो) आह‍ ओर ज़ारी(रोनेओर सीसक्ने) की तरफ़ हमारा मेलान कर देता है।
मसलन उपर ब्यान किया हुवा गुस्ताख रसूल पर चूँकि रहमत-ए-ख़ुदावंदी मुतवज्जा थी इस लिए वो नदामत और माजिरत ख़्वाही पर माइल होगया
तर्जुमा: (ए मुख़ातब) वो आँख ठंडी है जो इस (महबूब हक़ीक़ी) के लिए रोती है
और वो दिल मुबारक है जो इस के (सोज़ इशक़) से जलता है
तर्जुमा: (अल्लाह की मुहब्बत और इस के ख़ौफ़ से) हर आह ओर बुका(रोने) का अंजाम ख़ंदा (हंसी ख़ुशी) है। अंजाम का ख़्याल रखने वला ही मुबारक बंदा है।
जैसा कि कुरानी इरशाद है: बेशक तंगी के साथ फ़राख़ी(कुशादगी) है। लिहाज़ा आज जो शख़्स याद इलाही में रोने की तकलीफ़ उठाता है वो कल के दिन मुराद हासिल होजाने के बाद ख़ंदां और मसरूर होगा
तर्जुमा: जहां आब-ए-रवां होता है वहां सब्ज़ा उगता है। (इसी तरह) जहां आँसू बहते हैं वहां (अल्लाह की ) रहमत (की बारिश) होती है।
यहां मोलाना का इशारा एक हदीस शरीफ़ की तरफ़ है :
यानी एक तो आँसू का वो क़तरा है जो अल्लाह के ख़ौफ़(डर) से बहे और एक ख़ून का वो क़तरा है जो अल्लाह की राह में बहाया जाये
तर्जुमा: सय्यद कौनैन स.व. ने इस पर रहम किया (और इस को) माफ़ फ़र्मा दिया जबकि इस नादिम (शख़्स) ने जुर्रत करके
तौबा करली
तर्जुमा: (अगर) तुम (अल्लाह से अपने लिए) रहम चाहते हो तो अशकबार (होकर माफ़ी चाहने वाले) पर रहम करो। (अगर) तुम रहम चाहते हो तो (पहले) कमज़ोरों पर रहम करो।
ये भी एक हदीस शरीफ़ का मफ़हूम है कि अगर किसी को अल्लाह की रहमत की आरज़ू है तो उसे चाहीए कि दूसरों पर रहम करे।

दरस बसीरत:
१ हमेशा अल्लाह वालों का अदब‍ ओर एहतिराम करना चाहीए वर्ना मामूली बेअदबी भी वबाल जान बन जाती है हदीस क़ुदसी में इरशाद रब्बानी है: यानी कोई भी मेरे दोस्त के साथ अदावत से पेश आए तो इस के ख़िलाफ़ मेरा एलान जंग है।
२ अल्लाह वाले खास कर अन्बीया किराम और खासतौर पर सरदार‍ ए‍ अन्बीयास.व. की शान में गुस्ताख़ी करने वाले का दुनिया में
ही बुरा अंजाम होता है और आख़िरत में तो इस
का अज़ाब अलग‌ है।
३ किसी बेअदब की तरफ‌ से की गई माज़रत ख़्वाही को को क़बूल करते होई हुज़ूर स.व. उसे माफ़ फ़र्मा दिया करते।अपने आक़ा स.व. के इस उस्वा-ए-हसना का इत्तिबा करते हुए हमें भी अपने किसी भाई के उज़्र पर माफ़ी से काम लेना चाहीए।
४ अगर हम को अल्लाह के रहम‍ ओर रहमत की उम्मिद‌ हो तो हमें भी चाहीए कि दूसरों के साथ रहम‍ ओर माफ़ी के सुलूक के साथ पेश आएं