झारखंड की दारुल हुकूमत रांची के पास तमाड़ के इलाक़े में ज़मीन के नीचे दबा हुआ है एक लाख टन सोना। यह उम्मीद भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण यानी जीएसआइ के साइंसदां ने जगाई है। झारखंड में पहले भी एक जगह सोने का जखीरा होने की बात सामने आई थी। लिहाजा, इस इमकान पर भी सरकारी अमला काम करने की मंसूबा बना रहा है।
इस बार की बारिश के बाद रांची के पास तमाड़ में पांच स्क्वाइर किलोमीटर के इलाक़े में ड्रिलिंग का काम शुरू किया जाएगा। यहां पहले भी ड्रिलिंग की जा चुकी है। उसमें साइंसदां को सोने का जखीरा होने के सुबूत मिले थे। वे नमूने क़ौमी मेयार के मुताबिक ही थे। यहां क़रीब एक लाख टन सोने का जखीरा होने की इमकान है। इसकी बाज़ार में क़ीमत क़रीब 25,000 करोड़ रुपए है।
झारखंड के साबिक़ जमीनी आलात के डाइरेक्टर जेपी सिंह का दावा है कि उन्होंने जीएसआई से यह रिपोर्ट मंगवाई थी। आखिरी रिपोर्ट हुकूमत को अब तक नहीं मिली है। इस रिपोर्ट के मिलते ही वहां खुदाई का काम शुरू कर दिया जाएगा। शुरुआती रिपोर्ट में तमाड़ के सिंदुरी, लुंगटु, हेपसेल और परासी में ज़मीन के नीचे सोने का जखीरा होने का दावा किया गया है। रिपोर्ट मिलने के बाद लुंगटू-हेपसेल-परासी ब्लॉक बनाया जाएगा। यह मशरिकी सिंहभूम के कुंडेररकोचा (पोटका) के बाद झारखंड का दूसरा गोल्ड ब्लॉक होगा। तमाड़ का यह इलाका रांची से तक़रीबन 60 किलोमीटर की दूरी पर है।
इस इलाके में पहली बार साल 2006 में ड्रिलिंग की गई थी। झारखंड में जीएसआई के उस वक़्त के डाइरेक्टर आरके प्रसाद ने 2011 में इस बाबत एक खत हुकूमत को लिखी थी। ख़त में तमाड़ में ज़मीन के नीचे सोने का खज़ाना होने की बात कही गई थी। यह भी बताया गया था कि पहले फेस में 12 जगहों पर ड्रिलिंग की गई। इसके बाद 12 दूसरे जगहों पर भी खुदाई की गई। जीएसआई के लिए खुदाई करने वाली आदरा मिनरल एक्सप्लोरेशन कारपोरेशन लिमिडेट यानी एमइसीएल की रिपोर्ट भी इस बात की तसदीक करती है। इस कानकुनि में तकरीबन सवा चार लाख रुपए खर्च हुए थे। इसके बाद इंडियन ब्यूरो आफ माइंस के अफसरों ने भी यहां सर्वे किया था।
तमाड़ का सिंदुरी और परासी गांव सुवर्णरेखा नदी के नज़दीक ही है। छोटानागपुर की घाटी से निकलने वाली इस नदी के बालू में सोना होने की बात कही जाती है। बरसात के दिनों में गांव के लोग बालू में सोने का कण खोजते हैं। रांची के सुनार यही कण 200-300 रुपए में इनसे खरीद लेते हैं। यह सालों पुरानी रिवायत है, जो आज भी बदस्तूर जारी है।
बाशुक्रिया : बीबीसी हिन्दी डॉट कॉम