राजीव गांधी कत्ल केस में उम्र कैद की सजा भुगत रही एस नलिनी ने सुप्रीमकोर्ट में दरखास्त दायर कर इस मामले में उम्रकैद काट रहे सात मुल्ज़िमो की रिहाई से पहले तमिलनाडु की हुकूमत के लिये मरकज़ से मश्वरा करने के मुताल्लिक कानूनी फराहमी को “गलत” ऐलान करने की गुजारिश किया है।
नलिनी ने अपनी दरखास्त में सज़ा के अमल इख्लाक की दफा 435 (1) को चैलेंज दी है। इस फराहमी के तहत अगर किसी मामले की मरकज़ी जांच ब्यूरो ने जांच की है तो ऐसे केस के मुज़रिम की वक्त से पहले रिहाई के मामले में रियासती हुकूमत को मरकज़ से मश्वरा करना होगा। राजीव गांधी कत्ल केस में उम्र कैद की सजा काट रही नलिनी 23 साल से जेल में बंद है। निचली अदालत ने नलिनी को 28 जनवरी,1998 को मौत की सजा सजा सुनायी थी जिसे तमिलनाडु के गवर्नर ने 24 अप्रैल 2000 को उम्र कैद में तब्दील कर दिया था।
नलिनी ने दरखास्त में कहा है कि दस साल से कम वक्त जेल में गुजारने वाले उम्र कैद की सजा पाये 2200 मुजरिमो को तमिलनाडु की हुकूमत ने पिछले 15 साल में वक्त से पहले रिहा किया है लेकिन उसके मामले पर सिर्फ इस बुनियाद पर गौर नहीं किया गया कि इस केस की जांच सीबीआई ने की थी और उसका मामला सज़ा के अमल इख्लाक की दफा 435 (1) के दायरे में आता है।
आली अदालत की तरफ से इस कत्ल में मुरूगन, संतन और पेरारिवलन की मौत की सजा को उम्र कैद में तब्दील किये जाने के अगले ही दिन 19 फरवरी को जयललिता की हुकूमत ने सभी सात मुल्ज़िमों की सजा में छूट देने के तजवीज पेश की थी। इन कैदियों को रिहा करने के रियासती हुकूमत के फैसले को मरकज़ ने आली अदालत में चुनौती दी थी जिसने इस फैसले पर रोक लगाने के साथ ही इसे आईंन की बेंच को सौंप दिया था।