रांची : अपने रसूख का फायदा उठाकर अब कोई भी कैदी इलाज के नाम पर रिम्स के कॉटेज में नहीं रह पाएगा। हाईकोर्ट ने जुमा को सरकार से कहा कि कॉटेज में किसी भी कैदी को नहीं रखा जाए। अगर कैदी को इलाज की जरूरत है तो उसे कैदी वार्ड में रखें।
खुस नोटिफिकेशन के जरिये से ली गई पीआईएल पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस वीरेंद्र सिंह की बेंच ने जुबानी तनकीद करते हुए कहा कि कैदियों को कॉटेज में क्यों रखा जाए। इलाज की जरूरत है तो उसे अस्पताल में रखा जा सकता है। अदालत ने कहा कि दीगर मामलों में वीआईपी को कुछ इज़फ़ी सहूलत दी जा सकती हैं। पर इलाज में यह कैसे हो रहा है। अदालत ने तीन सप्ताह बाद अगली सुनवाई की तारीख तय की। अदालत ने कहा कि रिम्स चाहे तो कॉटेज का इस्तेमाल आमदनी बढ़ाने के लिए कर सकता है। अमीर लोग, जो ज़्यादा पैसे दे सकते हैं, उन्हें कॉटेज मूहाइया कराकर डॉक्टरी सहूलत दस्तयाब करा सकता है।
रिम्स के कॉटेज के इस्तेमाल के सिलसिले में मीडिया रिपोर्ट पर हाईकोर्ट ने खुद नोटिफिएशन लिया था। रिपोर्ट में बताया गया था कि किस प्रकार असर दिखाकर रसूखदार अदालत के फैसले के बाद रिम्स में एड्मिट हो जाते हैं।
सुनवाई के दौरान एमिकस क्यूरी ने कैदियों को रिम्स के कॉटेज में रखे जाने पर इतराज जताई । उन्होंने कहा कि अस्पताल में कैदियों के लिए अलग वार्ड है। इसमें 10 कमरे और 19 बेड हैं। फिर भी कैदियों को कॉटेज में रखा जाता है।
सरकार की तरफ से बताया गया कि रिम्स में इलाज के लिए कैदियों को भेजने की नई निजाम लागू की गई है। सात मेम्बर कमेटी बनाई गई है, जो कैदियों के इलाज के सिलसिले में फैसला लेती है। कमेटी में रिम्स के डाइरेक्टर और मेडिसिन, सर्जरी, आई, रेडियोलॉजी विभाग व उस वार्ड के चीफ़ शामिल हैं, जिसमें कैदियों का इलाज होना है।