रांची 6 जुलाई : रियासत में गजाई किल्लत और सेहत से मुताल्लिक वजूहात से हर साल 46,000 बच्चों की मौत होती है। नव वालुद और कम उम्र के बच्चों की नागहानी मौत पर तशवीश का इज़हार करते हुए यूनिसेफ के अफसरों ने यह मालूमात दी। जुमा को यूनिसेफ की तरफ से मुनाक्किद वर्कशॉप में नुमाय्न्दों ने बच्चे की मौत, बच्चों की शादी, साफ़ सुथरे की कमी, गजाई किल्लत और वेकशीनेशन समेत मुख्तलिफ मुद्दों पर तफसील से बहस की।
यूनिसेफ के पीपीइ ऑफिसर कुमार प्रेमचंद ने बताया कि एएचएस के सर्वे (2011-12 ) के मुताबिक झारखंड में पांच साल से कम उम्र के 46000 बच्चें हर साल मौत के शिकार होते हैं। इनमें 20000 बच्चों की मौत वालुद के 28 दिनों के अंदर होती है। इस तरह हर दिन 125 बच्चों की नागहानी मौत होती है।
उन्होंने कहा कि अभी भी सिर्फ 37. 6 फिसद ख्वातीन ही
अदारह की तर्सिल का फायदा उठाती हैं। 60 फिसद ख्वातीन घर पर ही तर्सिल करती हैं। जबकि हुकूमत की तरफ से आदरह की तर्सिल के लिए 1400 रुपये की मुराआत रक़म दी जाती है। रियासत के 35000 गांवों में एएनएम की जानिब से बुनियादी सेहत सहूलियात पहुंचायी जाती है, फिर भी महज 65 फिसद बच्चों का ही वेकशीनेशन हो पाता है। बच्चे के तवल्लुद के एक घंटे के अंदर दूध पिलाने से 22 फिसद बच्चों को मौत से बचाया जा सकता है, जबकि रियासत में सिर्फ 33 फिसद माएं ही तवल्लुद के तुरंत बाद बच्चे को दूध पिलाती हैं।