रियास्ती बजट , राहत कम बोझ ज़्यादा

चीफ़ मिनिस्टर किरण कुमार रेड्डी ने असेंबली में पेश कर्दा बजट बराए मालीयाती साल 2012-13 को अपने कैरियर का बेहतरीन बजट क़रार दिया है। 1.45 लाख करोड़ के इस बजट के बावजूद रियासत की तक़रीबन 8 करोड़ नफ़ूस पर मुश्तमिल आबादी में हर शहरी को 16240 के क़र्ज़ के बोझ तले दबा दिया गया है।

इस बजट की अहम ख़ुसूसीयत तलाश की जाए तो यही पता चलेगा कि वज़ीर फ़ीनानस  (फाइनेँस) आँम राम नारायण रेड्डी ने रियासत के मालिया पर मनफ़ी असर पड़ने के बावजूद तरक़्क़ी और बहबूद के दरमयान तवाज़ुन पैदा करने की कोशिश की है। उन्हों ने जारीया मालीयाती साल 1.28 लाख करोड़ रुपय के साथ 14 फ़ीसद पैदावार का निशाना मुक़र्रर किया है लेकिन उन्होंने ये नहीं बताया कि रियासत को होने वाले 20,008 करोड़ के मालीयाती ख़सारा को दूर करने के लिए किया इक़दामात किए जाऐंगे।

रियासत में ज़िमनी इंतेख़ाबात को मद्द-ए-नज़र रखकर तैयार कर्दा बजट में ज़्यादा तरक़्क़ीयाती प्रोजेक्टस पर तवज्जा देने की कोशिश की गई जबकि मुख़्तलिफ़ तबक़ात के लिए शुरू कर्दा स्कीमात को जारी रखने का ऐलान किया गया। हुकूमत ने किसी नए टैक्स के बगै़र बजट को तैयार करने का मुज़ाहरा किया है मगर सालाना ख़सारा को दूर करने के लिए वो खु़फ़ीया तौर पर अवाम पर टैक्स का बोझ आइद करेगी।

ये बजट इस तरीक़ा से तैयार किया गया है कि आने वाले दिनों में अवाम से ग़ैर मालना टैक्स हासिल किया जाएगा। ग़ैर मंसूबा जाती मसारिफ़ सब से ज़्यादा 91,854 करोड़ बताए गए हैं लेकिन मंसूबा जाती मसारिफ़ की हद 54,030 करोड़ रुपये बताकर ये तवक़्क़ो ज़ाहिर की गई है कि इस बजट से रियासत में 10 फ़ीसद पैदावार को यक़ीनी बनाया जाएगा।

तवानाई शोबा के लिए बजट में जारीया साल 4,980 करोड़ से बढ़ाकर 5,937 करोड़ किया गया। 957 करोड़ रुपय की ज़ाइद रक़म बर्क़ी सारिफ़ीन को राहत फ़राहम करने के लिए मुख़तस की गई है ताकि उन्हें बर्क़ी शरहों में इज़ाफ़ा के बोझ से बचाया जा सके। मगर इस बजट से तवानाई, बर्क़ी का बोहरान हो या हुक्मरानी के मसाइल ये एक दिन में हल होने वाले नहीं हैं। इसके लिए हुकूमत को ठोस इक़दामात करने होंगे।

क़ौमी सतह पर इक़तिसादी उमोर के जो फ़ैसले होते हैं इसकी रोशनी में ही रियास्ती हुकूमत को मालीयाती तैयारी करनी होती है। चीफ़ मिनिस्टर किरण कुमार रेड्डी ने ज़िमनी इंतेख़ाबात की तैयारी के लिए बजट को मुहतात तरीक़ा से बनाया है। इस बजट के बारे में अपोज़ीशन ने जो तजज़िया ( अलग अलग) किया है वो किरण कुमार रेड्डी हुकूमत की तक़रीबन 16 माही हुक्मरानी के लिए गौरतलब है क्योंकि ग़ैर कारकर्दगी वाला बजट तैयार करने का इल्ज़ाम आइद करते हुए सदर तेलगुदेशम चंद्रा बाबू नायडू ने बजट को अवाम पर ज़ाइद टैक्स बोझ डालने के मुतरादिफ़ क़रार दिया।

मंसूबा जाती मसारिफ़ को 29 फ़ीसद से घटाकर 18 फ़ीसद कर दिया जाए तो इसमें तरक़्क़ी-ओ-बेहतरी की उम्मीद किस तरह की जा सकती है। रियासत के बड़े शोबों को नजरअंदाज़ कर दिया गया। बहबूद और ज़राअत शोबा के लिए गुज़श्ता साल के बजट 3,200 करोड़ के मुक़ाबिल इस साल सिर्फ 2572 करोड़ रुपय मुख़तस किए हैं।

इस तरह नौजवानों को रोज़गार फ़राहम करने के लिए शुरू कर्दा स्कीम राजीव युवा करना लो भी हुकूमत की ग़ुर्बत ज़दा पालिसीयों से दो-चार हो चुकी है। इसलिए रोज़गार का दर सिर्फ ख़ानगी शोबों में खोला गया है। राजीव युवा कर नाला स्कीम के लिए हुकूमत ने मुख़्तलिफ़ महिकमों को 777 करोड़ रुपय के फ्लैगशिप प्रोग्राम्स शुरू किए हैं जबकि ग़रीबों के ईलाज के लिए शुरू कर्दा आरोग्य श्री स्कीम के लिए इस मर्तबा भी गुज़श्ता की तरह 925 करोड़ रुपये मुख़तस किए गए हैं।

इस बजट से साफ़ ज़ाहिर होता है कि हुकूमत ने अपने सयासी मुफ़ादात को महफ़ूज़ रखते हुए इस से पैदा होने वाली ख़राबियों की सज़ा अवाम को देने का तहय्या कर लिया है। ये बात वाज़िह है कि जब तक सयासी क़ाइदीन ख़ासकर हुक्मराँ जमात अपने प्वाईंट स्कोरिंग की सियासत तर्क नहीं करेगी उस वक़्त तक अवाम को तरक़्क़ी का समर हासिल नहीं होगा।

ना ही इक़तिसादी-ओ-अवामी सतह पर इंसाफ़ के तक़ाज़े पूरे हो सकेंगे इस वजह से दिन ब दिन अमीरों के असासे बढ़ रहे हैं और ग़रीबों की तादाद मुसलसल इज़ाफ़ा हो रहा है जिससे रुपया की ग़ैर मुसावी तक़्सीम का निज़ाम यकतरफ़ा होता जा रहा है। रियासत में सनअती शोबा ने बजट को मायूसकुन क़रार दिया है तो सनअतों से वाबस्ता वर्कर्स को भी इससे मायूसी होगी।

रुपये की क़दर में गिरावट के पेशे नज़र रियास्ती बजट का तक़ाबुल किया जाए तो इस बजट से सिर्फ और सिर्फ आम आदमी ही इज़ाफ़ी बूझ का शिकार होगा। हुकूमत ने अक़ल्लीयतों के बजट में 62 फ़ीसद इज़ाफ़ा के साथ 489 करोड़ रुपय मुख़तस किए हैं। इस मामूली बजट से अक़ल्लीयतों की आबादी का अहाता किया जाएगा जबकि उसकी ज़्यादा तर रक़म फ़ीस रीमबर्समेंट पर ख़र्च होगी। अक़ल्लीयतों को 489 करोड़ दिए गए हैं तो दलितों को 2677 करोड़ रुपय मुख़तस किए गए हैं जबकि अक़ल्लीयतों के लिए 3000 करोड़ रुपय का बजट मुख़तस किया जाता तो नाकाफ़ी होता ।

मुस्लमानों के लिए वसीअ अलक़लब और ईमानदार क़ियादत की कमी की वजह से मसाइल ज्यों के त्यों हैं। हुकूमत ने मुस्लमानों की बहबूद के लिए कमिशनरीएट के क़ियाम का ऐलान किया है लेकिन किसी ख़ास बजट और जज़बा से आरी कमिशनरीएट का क़ियाम अक़ल्लीयतों की बहबूद और उनके मसाइल की यकसूई में किस हद तक मुआविन साबित होगा। ये वक़्त ही बताएगा क्योंकि हुकूमत ने अक़ल्लीयती इदारों के लिए ग्रांट एन ऐड और मसाजिद की मरम्मत और क़ब्रिस्तानों की हिसारबंदी के इलावा दीगर उमोर की अंजाम दही के लिए पेश कर्दा बजट तजावीज़ को क़बूल नहीं किया लेकिन बजट अक़ल्लीयती बहबूद के लिए हुकूमत ने जो कुछ रक़म मुख़तस की है इस पर इक़्तिफ़ा करते हुए मुताल्लिक़ा अक़ल्लीयती इदारों के ज़िम्मेदारों को हर रोज़ नए मसाइल से दो-चार होना पड़ेगा और उन्हें हुकूमत की नाज़ुक तबीयत को नागवार ना गुज़ारने वाले काम अंजाम देने होंगे।