यूं तो मैं जातिगत आधार पर समाज के बांटे जाने का विरोध करता रहा हूँ लेकिन आजकल के परिवेश में बात कुछ और है, आज एक छात्र की जान इसलिए गयी है क्यूंकि वो दलित था. क्यूँ होता है ऐसा कि किसी की जान सिर्फ़ इसलिए चली जाती है क्यूंकि वो दलित है? या फिर एक मुस्लिम? या फिर हिन्दू?
अक्सर वो लोग जो आरक्षण का विरोध करते हैं, कहते हैं कि समाज में हर किसी को बराबरी के मौक़े मिलने चाहियें, ये और बात है कि यही लोग दलित की फ़ाइल पे दस्तख़त नहीं करते, ये वो लोग हैं जो अक्सर ट्रेनों में आपसे सर-नाम पूछते नज़र आ जायेंगे, ये वो लोग हैं जो दलित के साथ बैठ कर खाना नहीं खा सकते, ये वो लोग हैं जो दलितों को मंदिरों में घुसने नहीं देते, कौन हैं ये लोग ? कौन हैं ये जो यूनिवर्सिटी जैसी जगहों पे अपनी गंध फैला रहे हैं.
इसके आगे और पीछे की कहानी में वो लोग हैं जो नहीं चाहते हैं कि समाज इस जातिगत बंटवारे से बाहर आये. आज वो लोग जो ख़ुद को देशभक्त कहते हैं, चुप हैं. जो किसी छोटी बड़ी बात पे लोगों को भद्दी-भद्दी गालियाँ देने लगते हैं वो आज सामने नहीं आना चाहते.
इधर कुछ ‘भक्त’ इस बारे में बात कर रहे हैं कि रोहिथ वेमुला दलित था या नहीं!, कुछ एक ने साबित करने की कोशिश की कि वो इसाई था, कुछ कहते हैं कि वो दलित था इसलिए उसकी मौत की चर्चा हो रही है कोई अगड़ी जाति का मरता तो कोई ख़बर भी ना लेता….
बात उसके दलित होने ना होने की कभी थी ही नहीं, बात थी उसकी लड़ाई की.. समाज के उस तबक़े के ख़िलाफ़ जो ‘दलित-अगड़ी’ की बात करता है, जो हिन्दू-मुस्लिम की बात करता है, बात ये है कि उसने आवाज़ उठायी थी.इस सिस्टम ने उसकी आवाज़ दबाने की कोशिश की लेकिन वो नहीं माना उसने अपनी पुकार जारी रखी और आज जबकि वो नहीं है, वो ज़िंदा है. रोहिथ दलितों की आवाज़ था, एक जगह एक हिस्से पर उसने मजलूमों की लड़ाई लड़ने की कोशिश की, उसके फेसबुक प्रोफाइल से साफ़ पता चलता है कि उसने पिछले दिनों मज़लूमों के हक़ की लड़ाई लड़ी, इसके लिए उसे यूनिवर्सिटी से प्रताड़ना भी झेलनी पड़ी, हॉस्टल से भी निकाला गया और तो और उसने इसी लड़ाई के एक हिस्से में उसने अपनी जान दी. मुझे यक़ीन है ये लोग जो रोहिथ को बुरा साबित करने की कोशिश कर रहे हैं ये जानते हैं कि रोहिथ क्या था.
लखनऊ की अम्बेकर यूनिवर्सिटी में प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी का विरोध करने वाले रोहिथ वेमुला के समर्थकों को यूनिवर्सिटी से निकाल दिया गया, यूनिवर्सिटी के VC महोदय यूनिवर्सिटी के छात्रों को कहते हैं “शेम शेम शेम”, ये वही VC हैं जो सरकार के लिए भजन गाते हैं. फिर भी कहा जा रहा है मुल्क में असहिष्णुता नाम की चीज़ नहीं है.
ख़ैर, एक ब्राह्मण-वादी सरकार में जब एक दलित स्कॉलर को बर्दाश्त नहीं किया गया तो उसके समर्थकों को कैसे बर्दाश्त किया जाएगा.
और बहुत कुछ है कहने को और बहुत कुछ कहा भी जाएगा, अभी वाल्टायर के इस कथन के साथ जिसमें अभिव्यक्ति की आज़ादी की बात कही गयी है मैं अपनी बात को रोकना चाहूंगा..
“मैं तुम्हारी किसी बात का समर्थन नहीं करता लेकिन मैं मरते दम तक तुम्हारे बोलने की आज़ादी की रक्षा करूंगा “
(अरग़वान रब्बही- arghwan86@gmail.com)