मस्जिद नबवी सल्लाह अलैहि वसल्लम पर सेक्योरिटी और मुक़ाम मुक़द्दस की सफ़ाई पर मामूर रज़ाकारों के साथ साथ महकमा अमर बिलमारुफ़ व नही अन अल्मुंकिर के उल्मा की बड़ी तादाद भी ज़ाइरीन की दीनी रहनुमाई में हुमातन मसरूफ़ है।
उल्मा की बुनियादी ज़िम्मेदारी दुनिया भर से आने वाले ज़ाइरीन को रोज़ा-ए-रसूल सल्लाह अलैहि वसल्लम पर हाज़िरी के वक़्त ग़ैर इस्लामी रसूमात और बिदआत से बाज़ रहने की तलक़ीन और हबीब-ए-ख़ुदा के हाँ हाज़िरी के शरई कानून से आगाह करना है। उलार बया डाट नैट के मुताबिक़ मस्जिद नबवी सल्ल्लाह अलैहि वसल्लम पर ज़ाइरीन की ख़िदमत और रहनुमाई पर मामूर आलिमे दीन उल-शेख़ अबदुल्लाह अलहरबी ने बताया कि रोज़ाए रसूल पर आने वाले तरह तरह की ग़ैर इस्लामी रसूमात और बिदआत में मुबतला होकर ग़ैर मस्नून आमाल की तरफ़ राग़िब होते हैं,
यहां पर मुतय्यन उल्मा उन्हें हक़ीक़ी इस्लामी तालीमात के मुताबिक़ रोज़ाए रसूल पर हाज़िरी के आदाब और करीनों से आगाह करते हैं। एक सवाल के जवाब में उल-शेख़ अलहरबी का कहना था कि मस्जिद नबवी ऐपरडीवटी बाइस सआदत ख़िदमत है और ये कम ही लोगों को नसीब होती है।
वो मस्जिद नबवी में गुज़रे लम्हात को अपनी ज़िंदगी का क़ीमती वक़्त समझते हैं। बार बार रोज़ाएरसूल की ज़यारत का शरफ़ हासिल करने वाले अक़ीदतमंद वहां पर रहनुमाई के लिए मामूर उल्मा से ना सिर्फ़ वाक़िफ़ होजाते हैं बल्कि उन से मुलाक़ात को भी अपने लिए बाइस फ़ख़र समझते हैं, लेकिन उल्मा ख़ुद को गोशा गुमनामी में रखने की पूरी कोशिश करते हैं।
इस के बावजूद सालाना लाखों ज़ाइरीन इन उल्मा की शौहरत का भी बाइस बनते हैं।