लाठियों के सहारे भोपाल फ़र्ज़ी मुठभेड़ के सवाल को हुकूमतें नहीं दबा पाएंगी: राजीव यादव

भागलपुर न्याय मंच और मुस्लिम एजुकेशन कमिटी भागलपुर के द्वारा देश के विभिन्न हिस्सों में दलितों-अल्पसंख्यकों पर जारी हमले और अधिकारों से बेदखल किये जाने के खिलाफ न्याय के लिए जारी साहसिक आंदोलन का नेतृत्व करते हुए सत्ता का दमन झेलने वाले रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव को 20 नवंबर को गांधी शांति प्रतिष्ठान में न्याय मंच द्वारा आयोजित सम्मान समारोह में सम्मानित किया गया। इस सम्मान से प्रो। फारुक अली ने राजीव यादव को सम्मानित किया।

न्याय मंच के नेता रिंकु एवं डॉ। मुकेश कुमार ने जारी प्रेस-विज्ञप्ति में बताया कि अल्पसंख्यकों-वंचितों के प्रश्नों पर रिहाई मंच उत्तर प्रदेश सहित देश के अन्य हिस्सों में भी साहसिक कदम ले रहा है। पिछले दिनों भोपाल एनकाउंटर की न्यायिक जांच की मांग पर प्रतिवाद करते हुए रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने लखनऊ में बर्बर पुलिस दमन झेला। न्याय मंच राजीव यादव को इस दौर में साहसिक लड़ाई का नेतृत्व करने के लिए सम्मानित कर रहा है। इस मौके पर राजीव यादव ने सत्ता द्वारा की जा रही ‘एनकाउंटर पॉलिटिक्स’ पर भी अपनी राय रखी।

‘वर्तमान में दलितों वंचितों का आंदोलन और सामाजिक न्याय का एजेंडा’ विषयक सेमिनार को संबोधित करते हुए रिहाई मंच महासचिव राजीव यादव ने कहा कि हम वो वाकया भुलाये नहीं भूल सकते जब नीतीश जी मोदी जी को विकास पुरुष बताते थे। उत्तर प्रदेश में अखिलेश सरकार में पांच हजार से अधिक सांप्रदायिक तनाव की वारदातें हुईं।

“मुजफ्फरनगर साम्प्रदायिक हिंसा के बाद जब रिहाई मंच की तरफ भाजपा विधायक संगीत सोम, सुरेश राणा जो जेल में रहकर फेसबुक से सांप्रदायिक हिंसा भड़का रहे थे, के खिलाफ तहरीर दी जाती है तो उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होती है। लेकिन जब हाशिमपुरा जनसंहार पर इंसाफ के लिए आवाज उठाई जाती है तो सामाजिक न्याय की दावेदारी करने वाले अखिलेश यादव का सांप्रदायिक अमला रिहाई मंच के नेताओं के ऊपर दंगा भड़काने का मुक़दमा कर देता है,” राजीव यादव ने कहा।

उन्होंने भोपाल फ़र्ज़ी मुठभेड़ पर कहा की पूरा देश मध्य प्रदेश की भाजपा सरकार की इस करतूत पर जब सवाल पूछ रहा था तो ऐसे में उत्तर प्रदेश के मिस्टर क्लीन ने रिहाई मंच के नेताओं के ऊपर लाठियां बरसाकर साबित कर दिया की भाजपा और उनकी सरकार में कोई अंतर नहीं है।

रिहाई मंच महासचिव ने कहा की लाठियों के सहारे भोपाल फ़र्ज़ी मुठभेड़ के सवाल को हुकूमतें नहीं दबा पाएंगी। रिहाई मंच बाटला हाउस, वारंगल फ़र्ज़ी मुठभेड़ से लेकर भोपाल फ़र्ज़ी मुठभेड़ तक की लड़ाई लड़ने के लिए प्रतिबद्ध है। इन सवालों को हल किए बिना कोई भी सामाजिक न्याय की लड़ाई पूरी नहीं हो सकती है।

उन्होंने कहा कि बाथे, बथानी टोला, मियांपुर, भागलपुर सांप्रदायिक हिंसा पीड़ितों को इंसाफ नहीं मिला है। इस बीच बिहार में सेकुलर-सामाजिक न्याय मार्का सरकारें चलती रहीं हैं। बिहार के छपरा, मोतिहारी, सुगौली, बेतिया, पिरो, सीतामढ़ी, मधेपुरा, गोपालगंज, गया से लेकर उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में सांप्रदायिक तनाव के दर्जनों मामले घटित हुए। ये वे राज्य हैं, जहां बीजेपी की सरकारें नहीं चल रही हैं। न केवल बीजेपी शासित राज्यों में बल्कि गैर बीजेपी शासित राज्यों में भी अल्पसंख्यक-दलित-आदिवासी, महिलाओं और कमजोर तबके के लोगों पर हमले जारी हैं। इसलिए आज के संदर्भों में नई राजनीति की जरूरत है।

उन्होंने आगे कहा कि लोकतंत्र में न्याय का सवाल सबसे अहम सवाल है, लेकिन सत्ता चौतरफा न्याय का गला घोंट रही है। दलित उत्पीड़न और सांप्रदायिक हिंसा के इलाकों को दलित उत्पीड़न क्षेत्र घोषित करते हुए उन इलाकों में विशेष किस्म की सुविधाओं की गारंटी होनी चाहिए। सामाजिक न्याय का एजेंडा अत्यंत ही व्यापक है और सामाजिक न्याय का सवाल आज भी अनुत्तरित है।