अब्बू अमल हैदराबाद हिंदूस्तान का वो तारीख़ी शहर है जिस में दाख़िल होते ही हर किसी की नज़र यहां की ख़ूबसूरत मसाजिद और उन की बुलंद-ओ-बालामीनारों पर पड़ती है, जिस के साथ ही हर कोई ये सोचने पर मजबूर होजाता है कि बेशक ये शहर तो मुसलमानाने हिंद की शनाख़्त (पहचान)उन के वक़ार उन की ऑन अन्न और शान-ओ-शौकत की अलामत है। ख़ूबसूरत तारीख़ी मसाजिद का ये शहर जहां फ़िर्क़ा परस्तों, गंगा जमनी तहज़ीब के दुश्मनों और इस्लामी फ़नतामीर की शाहकार इमारतों के वजूद से मायूस अनासिर (लोग)के लिए हमेशा से ही परेशानी का बाइस बना रहा है और उन की नज़रों में खटकता रहा है।
वहीं गंगा जमनी तहज़ीब के अलंबरदारों, इलम-ओ-हुनर के मतवालों, तारीख़ी इमारतों के क़द्रदानों और उखुवत-ओ-भाई चारगी के परवानों को ये शहर हमेशा अपनी जानिब खींचता रहा है। जहां तक हमारे शहर में मसाजिद का सवाल है ऐसा लगता है के हैदराबाद पर अल्लाह ताला का ख़ुसूसी रहम-ओ-करम है। यही वजह है के यहां के चप्पा चप्पा मैं मसाजिद ही मसाजिद हैं और फ़िज़ा -में अजानों की गूंज अपनी बरकतों-ओ-रहमतों की ख़ुशीयां बिखेरते रहती हैं, लेकिन अफ़सोस मस्जिदों के इस शहर में कुछ इसी मसाजिद भी हैं जो गैर आबाद हैं। यहां तक कि कई मसाजिद का नाम-ओ-निशान तक मिटा दिया गया है।
क़ारईन सियासत गैरआबाद मसाजिद को मंज़र-ए-आम पर लाते हुए अवाम और वक़्फ़ बोर्ड को ये एहसास दिलाने की कोशिश की है के अल्लाह के घरों को आबाद किया जाय। इन की पाक ज़मीन को अपने सजदों से सजाया जाय। चुनांचे हम इस से पहले लाल दरवाज़ा, गोली पूरा, छतरी नाका और उपूगोड़ा में वाक़ै 16 गैर आबाद मसाजिद और हज़ारों एकड़ अराज़ी (जमीन) पर फैले क़ब्रिस्तानों के बारे में तसावीर और मुकम्मल वक़्फ़ रिकार्ड के साथ तफ़सीली रिपोर्टस पेश करचुके हैं, लेकिन लाल दरवाज़ा इलाक़ा में एक ऐसी मस्जिद भी थी जिस का वक़्फ रिकार्ड में इंदिराज होने के बावजूद नज़रों से ओझल हो चुकी थी।
इस मस्जिद का पता चलाने की काफ़ी कोशिश की गईं और चूँकि ये काम पूरी नेक नीयती के साथ अंजाम दिया जा रहा है। अल्लाह ने हमारी मदद की और हमें इस गैरआबाद और नज़रों से ओझल रही मस्जिद तक पहुंचा ही दिया। क़ारईन ! हम जिस मस्जिद का तज़किरा कर रहे हैं वो तक़रीबन 20 साल से गैर आबाद है। ग़ैरमुस्लिम आबादी में घिरी हुई है और मस्जिद तक जाने के लिए अब सिर्फ चार फुट का रास्ता बाक़ी रह गया है जबकि इस मस्जिद को अहले ईमान की नज़रों में आने से रोकने के लिए अल्लाह के घर के दुश्मन अपनी अपनी नापाक कोशिशों में मसरूफ़ हैं। मस्जिद के बाब उलदाखिला (मेन गेट)पर लोग कचरा कुंडी रख कर इस में कचरा का ढेर डाल रहे हैं।
इन का मक़सद यही है के मुसल्ली मस्जिद में दाख़िल ना हो सकें। आप को बतादें कि हमाम बावली लाल दरवाज़ा में वाक़ै इस मस्जिद का नाम मस्जिद फ़तह उल्लाह बेग है। मस्जिद के अहाता में 5 बुज़्रगान-ए-दीन – के मज़ारात हैं और उन मज़ारात की जो चोखनडी है अपनी ख़ूबसूरत फ़न तामीर और नक़्श-ओ-निगार के लिहाज़ से फ़न तामीर का शाहकार कहलाने की मुस्तहिक़ (हकदार)है। आसारे-ए-क़दीमा के लिहाज़ से भी ये इमारत ख़ासी एहमीयत रखती है। माज़ी में ये इस मस्जिद के तहत कई एकड़ अराज़ी (जमीन) मौजूद थी, लेकिन फ़िलवक़्त 15 सौ गज़ अराज़ी (जमीन) तक ही इस का वजूद सिमट कर रह गया है।
सहन में जो चोखनडी है इस की 20 कमानें हैं और उन कमानों के दरमयान में 5 बुज़्रगान-ए-दीन – आराम फ़र्मा रहे हैं। अफ़सोस के शरपसंदों ने कुछ हिस्सा चोखनडी को गिरा दिया है और कमानों को मिस्मार(ढा) करदिया। चोखनडी का सिर्फ निस्फ़ हिस्सा बाक़ी रह गया है। हम ने मस्जिद के क़रीब मुक़ीम लोगों से बातचीत की और जानकारी हासिल करने की कोशिश की। पूच्या नामी एक ग़ैर मुस्लिम शख़्स ने जिन की उम्र 70 ता 72 साल होगी, मस्जिद के बारे में तफ़सीलात का ज़िक्र करते हुए बताया कि इस मुक़ाम पर दरअसल नवाब फ़तह उल्लाह बेग का बाग़ था और इस के ऐन वस्त (बीच)में मस्जिद और मज़ारात थे।
क़रीबी इलाक़ों के लोग अक्सर नमाज़ों की अदायगी के लिए मस्जिद आया करते थे। 1980 तक भी इस मस्जिद में पांच वक़त नमाज़ों के साथ साथ जुमा और ईद की नमाज़ों का बड़ी पाबंदी से एहतिमाम हुआ करता था। पूच्या के मुताबिक़ नवाब फ़तह उल्लाह बेग का बाग़ पाँच सात एकड़ अराज़ी (जमीन) पर फैला हुआ था लेकिन 1980 के बाद यहां एक मारवाड़ी और रेड्डी ने मिल कर इस अराज़ी (जमीन) की प्लाटिंग करदी। इस तरह इस मस्जिद की अराज़ी (जमीन) 7 एकड़ से सिकुड़ कर 1500 गज़ तक महिदूद होगई है। मस्जिद की अराज़ी (जमीन) पर पुख़्ता मकानात तामीर करदिए गए हैं। मस्जिद में जाने के लिए छोटा सा रास्ता वो भी बराए नाम छोड़ा गया है।
मस्जिद में दाख़िल होने से रोकने की ख़ातिर(लेट) अश्रार ने ऐन रास्ते पर कूड़ेदान रख दिया है। यहां आप को बतादें कि ये मस्नद मनपका टॉकीज़ लाल दरवाज़ा के बिलकुल में वाक़ै है और वक़्फ़ बोर्ड में इस का मुकम्मल रिकार्ड भी मौजूद है पूच्या से बातचीत के दौरान मस्जिद के क़रीब रहने वाली सुनीता नामी ख़ातून ने मुदाख़िलत करते हुए कहा कि हालात पहले जैसे नहीं रहे अब लोग नहीं चाहते कि हिन्दू और मुस्लमान के नाम लड़ाई झगड़ें करते रहीं। इस ख़ातूनने साथ ही ये भी कहा कि चंद मुट्ठी भर शरपसंदों की परवाह ना करते हुए मस्जिद की फ़ौरी हिसारबंदी (घेराव) कर देनी चाहीए। सुनीता ने पुरज़ोर अलफ़ाज़ में कहा आप लोग मस्जिद की फ़ौरी हिसारबंदी करलो वर्ना ये मस्जिद भी अपना वजूद खोदेगी और दुबारा नज़र नहीं आएगी।
तपना ने इंतिहाई पुर अज़म लहजा में कहा कि इस की परवरिश इस इलाक़ा में हुई है उसे यक़ीन है के हालात तबदीली हो चुके हैं। अब मुस्लमान इस मस्जिद का रुख कर सकते हैं। काश! इस गैर आबाद मस्जिद नवाब फ़तह उल्लाह की सदा-(आवाज)वक़्फ़ बोर्ड के बेहिस ओहदेदार भी सुन लेते तो कितना बेहतर होता। अब जबकि आस पास के ग़ैर मुस्लिम मर्द-ओ-ख़वातीन ख़ुद मस्जिद को आबाद करने में तआवुन का पेशकश कर रहे हैं उसे मैं वक़्फ़ बोर्ड आगे बढ़े और सब से पहले मस्जिद की हिसारबंदी करे।