‘एक देश एक चुनाव’ के समर्थन में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने सोमवार को विधि आयोग के न्यायमूर्ति बलवीर चौहान को खत लिखा, जिसे पार्टी के चार नेताओं ने ले जाकर सौंपा. 2019 लोकसभा चुनाव के साथ ओडिशा, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के विधानसभा चुनाव होने हैं. जबकि बीजेपी लोकसभा चुनाव के साथ 11 राज्यों के विधानसभा चुनाव कराने को लेकर कहीं न कहीं रजामंद है. बीजेपी को अपने इस कदम के पीछे रिस्क कम फायदा ज्यादा नजर आ रहा है.
बीजेपी एक सोची समझी रणनीति के तहत लोकसभा के साथ एक दर्जन के करीब राज्यों में विधानसभा चुनाव कराने की दिशा में तैयारी कर रही है. इसके जरिए बीजेपी एंटी इंकम्बेंसी से पीछा छुड़ाने और राज्यों के चेहरों के बजाय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दम पर चुनावी जंग फतह करना चाहती है.
बीजेपी आगामी लोकसभा के साथ जिन राज्यों के विधानसभा चुनाव कराने को लेकर तैयारी कर रही है. इनमें ज्यादातर राज्यों में बीजेपी की सरकारें हैं और एंटी इंकमबेंसी से जूझ रही हैं. हाल ही में आए चुनावी सर्वे के मुताबिक ज्यादातर राज्यों में बीजेपी की हालत खस्ता है. राजस्थान में नरेंद्र मोदी की रैली में लोग नारे लगा रहे थे कि ‘मोदी से बैर नहीं वसुंधरा तेरी खैर नहीं’. इसी तरह का राजनीतिक मिजाज मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड में नजर आ रहा है. ऐसे में बीजेपी लोकसभा के साथ राज्यों के विधानसभा चुनाव कराकर एंटी इंकमबेंसी के माहौल से निजात पाना चाहती है.
लोकसभा के साथ राज्यों के विधानसभा चुनाव कराने की मंशा के पीछे बीजेपी की ब्रांड मोदी को भुनाने की तैयारी है. बीजेपी शासित राज्यों के चेहरों के खिलाफ प्रदेश में माहौल है. लोकसभा के साथ राज्य में विधानसभा चुनाव होने पर पार्टी का चेहरा नरेंद्र मोदी होंगे. मोदी के चेहरे के सहारे बीजेपी पहले भी राज्यों का विधानसभा चुनाव जीत चुकी है. बीजेपी शासित राज्यों में मौजूदा मुख्यमंत्रियों से लोग नाराज हैं, लेकिन नरेंद्र मोदी से उन्हें कोई शिकायत नहीं है. इससे साफ समझा जा सकता है कि जब नरेंद्र मोदी चेहरा होंगे तो इसका फायदा स्वाभाविक तौर पर बीजेपी को मिलेगा.
लोकसभा के साथ जिन राज्यों के विधानसभा चुनाव कराने की बात सामने आ रही है, वहां सीधी लड़ाई कांग्रेस और बीजेपी के बीच है. इसी तरह से नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गांधी के बीच राजनीतिक मुकाबला होगा. बीजेपी की मंशा भी कुछ ऐसी ही है कि मोदी बनाम राहुल के बीच सियासी लड़ाई बनाई जाए. राहुल गांधी अपने तकरीबन डेढ़ दशक के सियासी जीवन में अब तक कोई चुनावी सफलता हासिल नहीं कर सके हैं. जबकि नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी केंद्र की सत्ता के साथ-साथ देश आधे से ज्यादा राज्यों में चुनावी जंग जीतने में कामयाब रही है.