सेकूलर पार्टी, सेकूलर लीडर सेकूलरिज्म के तहफ़्फ़ुज़ के लिए चाहे जितना शोर हंगामा मचाएं और सेकूलरिज्म ख़तरे में नारे बुलंद करके अवाम से वोट हासिल करने की कोशिश करें लेकिन इन में से किसी को सेकूलरिज्म की परवाह नहीं है, जिस की ताज़ा मिसाल मुल्क के आम इंतिख़ाबात हैं।
एक तरफ़ नरेंद्र मोदी मुल्क के लिए ख़तरा बताया जा रहा है दूसरी तरफ़ मोदी को यू पी के वाराणसी पार्लीमानी हलक़ा से शिकस्त दिलाने को कोई सेकूलर सियासी जमात, लीडर तैयार नहीं है। वाराणसी में मोदी के ख़िलाफ़ समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी ने अपने जिन उम्मीदवारों को खड़ा किया है वो मोदी के मुक़ाबले में इंतिहाई बौने हैं।
इन दोनों उम्मीदवारों में मोदी को मात देना तो दूर रहा मोदी के सामने इलेक्शन में ठहरते हुए नज़र नहीं आरहे हैं। आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल एक ऐसे अवामी लीडर ज़रूर हैं जो मोदी के मुक़ाबले में टिक सकते हैं। इस हलक़ा से क़ौमी एकता दल के सियासी माफ़िया मुख़तार अंसारी मैदान में हैं। वो गुजिश्ता इलेक्शन में बी जे पी के डाक्टर मुरली मनोहर जोशी से चंद हज़ार वोटों से हारे थे।
इस मर्तबा भी मुख़तार अंसारी मैदान में हैं। क़ौमी एकता दल के लीडर अफ़ज़ाल अंसारी ने सोनिया गांधी, मुलायम सिंह यादव, मायावती वग़ैरह को एक मकतूब लिख कर उनसे इस्तिदा की कि वो मोदी को हराने के लिए मुख़तार अंसारी की हिमायत करें और उन्हें अपना मुत्तफ़िक़ा उम्मीदवार बनाए लेकिन अफ़ज़ाल अंसारी के इस मकतूब का अभी तक किसी सियासी जमात लीडर ने कोई नहीं दिया है जिस से साफ़ होजाता है कि इन में से किसी को मोदी को हराने में दिलचस्पी नहीं है।
कांग्रेस ने अभी तक अपने उम्मीदवार के नाम का ऐलान नहीं किया है लेकिन जिन मुम्किना उम्मीदवारों के नाम चल रहे हैं वो सब मोदी के मुक़ाबले में बहुत कमज़ोर हैं। अरविंद केजरीवाल भी सेकूलर जमातों के बेहतरीन मुत्तफ़िक़ा उम्मीदवार होसकते हैं और केजरीवाल मोदी की रियाज़ी को उलट सकते हैं लेकिन केजरीवाल को भी कोई सेकूलर जमात हिमायत देने को तैयार नहीं है।
लखनऊ पार्लीमानी हलक़ा से बी जे पी के क़ौमी सदर राजनाथ सिंह इंतिख़ाबी मैदान में हैं। कांग्रेस से रीता बहू गुना जोशी और आम आदमी की पार्टी से जावेद जाफरी उम्मीदवार हैं। इन में सब से ज़्यादा लमबारी उम्मीदवार कांग्रेस की रीता बहू गुना जोशी हैं। गुजिश्ता इलेक्शन में रीता बहू गुना जोशी ने अटल बिहारी वाजपाई के मोतमिद ख़ास साबिक़ रियासती वज़ीर लाल जी टंडन को सख़्त टक्कर दी थी।
अगरचे जोशी चंद हज़ार वोटों के फ़र्क़ से इलेक्शन हार गई थी लेकिन रीता बहू गुना जोशी आज ही सब से ताक़तवर उम्मीदवार मानी जाती हैं। अगर तमाम सेकूलर पार्टीयां रीता बहू गुना जोशी को अपना मुत्तफ़िक़ा उम्मीदवार बना कर इलेक्शन लड़ाएं तो 1991 से लखनऊ पार्लीमानी सीट पर से बी जे पी के क़बज़ा को ख़त्म किया जा सकता है और लखनऊ में एक मर्तबा फिर से सेकूलरिज्म का झंडा लहराया जा सकता है।