नई दिल्ली, 09 अप्रेल: दिल्ली की एक अदालत ने आज एक फैसला सुनाते हुए कहा कि अगर इंसान को एक बावक़ार और बाइज़्ज़त ज़िंदगी गुज़ारनी हो तो उसे माली तौर पर मुस्तहकम होना चाहिए। अदालत ने एक शख़्स को हुक्म दिया कि वो अपने ज़ईफ़ वालदैन को गुज़ारे की रक़म के तौर पर 15 हज़ार रुपये माहना अदा करे।
एडीशनल सेशन जज पी के जैन ने अपना फैसला सुनाते हुए कहा कि ज़ईफ़ी में वालदैन को ना सिर्फ़ रहने का सहारा, अरकान ख़ानदान की तवज्जो बल्कि माली तआवुन की भी ज़रूरत होती है। अदालत ने उस शख़्स की दरख़ास्त को मुस्तर्द करदिया जहां इस ने मजिस्ट्रेट के इस हुक्मनामे को चैलेंज किया था जहां मजिस्ट्रेट ने उसे अपने 84 साला बूढ़े वालदैन को माहना 15 हज़ार रुपये अदा करने का हुक्म दिया था।