अल्लाह ताला ने इंसान को अशरफ़-उल-मख़लूक़ात बना कर फ़ित्री ख़ूबीयों से मालामाल किया है। इन ख़ूबीयों में से एक ख़ूबी शरम ओ हया है। शरई नुक़्ता-ए-नज़र(धार्मीक लीहाज) से शरम-ओ-हया इस सिफ़त(वीषेसता) को कहते हैं जिस की वजह से इंसान क़बीह और नापसंदीदा कामों से परहेज़ करता है।
दीन ए इस्लाम ने हया की एहमीयत को ख़ूब उजागर(ब्यान) किया है ताकि मोमीन बाहया(शर्मीला) बन कर मुआशरे(नागरीक्ता) में अमन-ओ-सुकून फैलाने का ज़रीया बने। नबी अकरम (स.व.) ने एक मर्तबा एक अंसारी ( रज़ी.) को देखा जो अपने भाई को समझा रहा था कि ज़्यादा शरम ना किया करो आप (स.व.) ने सुना तो इरशाद फ़रमाया : मायना:(पस हया ईमान का जुज़-ए-है)(बूखारी.मुस्लीम । मिशकात बाब उर्रीफ़क़ वल हयाय)
एक दूसरी हदीस में नबी अकरम (स.व.) ने इरशाद फ़रमाया :मायना: गोया इंसान जिस क़दर बाहया बनेगा उतनी ही इस में ख़ैर बढ़ती जाएगी। (बूखारी.मुस्लीम, मिशकात)
हया इन सिफ़ात(गूणों) में से है जिन की वजह से इंसान आख़िरत (परलोक) में जन्नत(स्वर्ग) का हक़दार बनेगा। नबी अकरम (स.व.) ने इरशाद फ़रमाया: मायना (हया ईमान का हिस्सा है और ईमान जन्नत में जाने का सबब है। बेहयाई जफ़ा है और जफ़ा जहन्नुम में जाने का सबब है) अहमद तीरमीज़ी । मिशकात )
हया की वजह से इंसान के क़ौल-ओ-फे़अल(बात ओर स्वभाव) में हुस्न-ओ-जमाल पैदा होजाता है। लिहाज़ा बाहया(शर्मीला) इंसान मख़लूक़(जन्ता) की नज़र में भी पुरकशिश बन जाता है और परवरदिगार आलम के हाँ भी मक़बूल (पसंदीदा) होजाता है।
क़ुरआन मजीद से भी इस का सबूत मिलता है। हज़रत शुऐब अलैहि स्सलाम की दुख़तर नेक अख़तर(पूत्री) जब हज़रत मूसा अलैहि स्सलाम को बुलाने के लिए आई तो इस की चाल ढाल में बड़ी शाइस्तगी और मियानारवी(संस्कूती ओर उत्त्मता) थी। अल्लाह रब उलईज्जत को ये शर्मीला पन इतना अच्छा लगा कि क़ुरआन मजीद में इस का तज़किरा फ़रमाया ।
इरशाद बारी ताला है:मायना:(और आई उन के पास इन में से एक लड़की शरमाती हुई)
सोचने की बात है कि जब बाहया इंसान (शर्मीला मनूष्य) की रफ़्तार-ओ-गुफ़तार संस्कार ओर स्वभाव अल्लाह ताला को इतनी पसंद है तो इस का किरदार कितना मक़बूल-ओ-महबूब होगा। लिहाज़ा जो शख़्स हया जैसी नेमत (उपहार) से महरूम होजाता है वो हक़ीक़त में महरूम उल्कीसमत बन जाता है। एसे इंसान से ख़ैर(भलाई) की तवक़्क़ो(उम्मीद) रखना भी फ़ुज़ूल है।
नबी अलैहि अस्सलाम ने इरशाद फ़रमाया मायना: (जब शरम ना रहे तो फिर जो मर्ज़ी में आये कर)(बूखारी । मिशकात )
इस से मालूम हुआ कि बेहया इंसान किसी ज़ाबता अख़लाक़ (संस्कारीक उसूलों) का पाबंद नहीं होता। इस की ज़िंदगी शुतूर बेमुहार(बेलगाम उन्ट) की मानिंद होती है। हया ही वो सिफ़त (गूण) है कि जिस की वजह से इंसान पाकीज़गी और पाकदामनी(पवीत्रता) की ज़िंदगी गुज़ारता है। बल्कि यूं कहना चाहीए कि हया और पाकदामनी लाज़िम-ओ-मल्ज़ूम हैं इन दोनों में चोली दामन का साथ है।
दर्ज जे़ल इस हक़ीक़त का जायज़ा लिया जाता है।
पाकदामनी क़ुरआन मजीद की नज़र में।
१। अज्रे अज़ीम(महान पूण्य) का वायदा
इरशाद बारी ताला है, मायना: (अपनी शर्मगाहों की हिफ़ाज़त करने वाले मर्द और औरतें और अल्लाह को कसरत से याद करने वाले मर्द और औरतें। इन के लिए अल्लाह ने मग़फ़िरत और बड़ा सवाब तैय्यार कर रखा है)
(अहज़ाब )
इस आयत में कितनी वज़ाहत के साथ ब्यान किया गया है कि पाकदामनी के साथ याद ए ईलाही में ज़िंदगी गुज़ारने वाले लोगों के लिए अल्लाह ताला ने मग़फ़िरत और बड़ा सवाब तैयार कर रखा है। सवाब से मुराद दुनिया की बरकतें और आख़िरत (परलोक) की नेमतें(पूरष्कार) हैं जबकि मग़फ़िरत से मुराद ये हे की पाकदामन शख़्स से होने वाली दूसरी ग़लती , कोताहियों को अल्लाह ताला जलदी माफ़ कर देंगे। ये बात मुशाहदे(देखञे ) में आई है कि जो तालिब इल्म (छात्री) पढ़ाई में लायक़ और मेहनती होता है उस्ताद उस की दूसरी कोताहियों को नजरअंदाज़ कर देता है।
अज्र के साथ अज़ीम का लफ़्ज़ निशानदेही कर रहा है कि पाकदामनी पर मिलने वाला इनाम आम मामूल से ज़्यादा होता है, वैसे भी दस्तूर यही हैकि बड़े लोग जिस चीज़ को बड़ा कह दें वो वाक़ई बहुत बड़ी होती है। यहां तो परवरदिगार आलम पाकदामनी पर मिलने वाले अज्र को बड़ा कह रहे हैं तो वाक़ई वो इनाम बहुत बड़ा होगा। मुबारकबाद के लायक़ हैं वो ख़ुशनसीब हस्तियां जो पाकदामनी की ज़िंदगी गुज़ार कर एसे अज्र की मुस्तहिक़ बन जाती हैं।
शेर : (नेअमत पाने वालों को उन की नातमों पर मुबारकबाद हो)
२। फ़लाह कामिल(मुकम्मील काम्याबी) की ख़ुशख़बरी
इरशाद बारी ताला है:मायना: (तहक़ीक़ फ़लाह पा गए वो मॶमन && जो अपने शर्मगाहों की हिफ़ाज़त करते हैं)
इस आयत मुबारका में फ़लाह पाने वाले मोमीनिन की चंद सिफ़ात का तज़किरा किया गया है जिन में से एक सिफ़त पाकदामनी है। इस से मालूम हुआ कि फ़लाह कामिल पाकदामन लोगों को ही हासिल होसकती है।
अरबी ज़बान में फ़लाह कहते हैं ऐसी कामयाबी को जिस के बाद नाकामी ना हो। ऐसी ख़ुशी को कि जिस के बाद ग़मी ना हो और अल्लाह ताला के यहां ऐसी इज़्ज़त मिलने को जिस के बाद ज़िल्लत ना हो।
पाकदामनी हदीस पाक की नज़र में
(१) नबी अकरम (स.व.) ने एक मर्तबा क़ुरैश के नौजवानों से फ़रमाया :मायना :(ए क़ुरैश के नोजवानों ! अपनी शर्मगाहों की हिफ़ाज़त करो । जीना (बालात्कार) मत करो। जो अपनी शरम गाह को महफ़ूज़ रखेगा इस केलिए जन्नत(स्वर्ग) है)
इस हदीस में रहमत दो आलम (स.व.) ने कितने वाजेह अलफ़ाज़ में ये हक़ीक़त खोल दी है कि जो लोग अपनी शर्मगाहों की हिफ़ाज़त करेंगे, जीना के ज़रीए नफ़सानी शहवानी शैतानी और वक़्ती लज़्ज़तों को हासिल करने से परहेज़ करेंगे उन को जन्नत की दाइमी ख़ुशीयां नसीब होंगी। उसे कहते हैं मेहनत थोड़ी और अज्र ज़्यादा।
हज़रत निसार फतहि इरशाद फ़रमाते हैं:
नूर में हो या नार में रहना
हर जगह ज़िक्र यार में रहना
चंद झोंके ख़ज़ां के बस सह लो
फिर हमेशा बहार में रहना
(२) रुम के बादशाह हिरक़्ल ने जब अबूसुफ़ियान से पूछा कि आँहज़रत (स.व.) किन चीज़ों की तालीम देते हैं तो अगरचे अबूसुफ़ियान उस वक़्त तक मुसल्मान नहीं हुए थे। उन्हों ने सीधे सादे अलफ़ाज़ में तालीमात नबवी (स.व.) का ख़ाका यूं पेश किया :
(वो हमें नमाज़, सदक़ा, पाकदामनी और सिला रहमी का हुक्म देते हैं)
मालूम हुआ कि पाकदामनी की तलक़ीन इस्लाम की बुनियादी तालीमात में से है।