अब्बू ऐमल- क़ारईन आज हम अपनी रिपोर्ट का आग़ाज़ आप लोगों से एक पहेली (मसला) पूछते हुए करते हैं। पहेली ये है के शहर की वो कौनसी मस्जिद है जिस में आज तक कोई जनाज़ा नहीं ले जाया जा सका। कोई नमाज़ जनाज़ा नहीं पढ़ाई गई। हम आप को इस मस्जिद के बारे में मामूली इशारे भी देते हैं। हमें उम्मीद है के चंद सुतूर पढ़ने के बाद आप के ज़हनों में इसी ख़ूबसूरत मस्जिद का तसव्वुर पहेली का जवाब बन कर उभरेगा। हाँ ये मस्जिद इंतिहाई बुलंदी पर वाक़ै है।
मस्जिद अगरचे इंतिहाई मुख़्तसर है, लेकिन इस की ख़ूबसूरती का कोई जवाब नहीं। अंदरूनी हिस्सा में 44 मुस्लियों के नमाज़ पढ़ने की गुंजाइश है यानी सिर्फ दो सफ़ ही बन सकती हैं जबकि सहन को मिलाईं तो इस मस्जिद में जुमला 260 मुस्लियों के नमाज़ पढ़ने की गुंजाइश है। दाएं जानिब इमाम साहिब का कमरा है और बाएं जानिब मुअज़न के लिए कमरा बनाया गया है।
सारी दुनिया में फ़न तामीर की इस शाहकार मस्जिद को चारमीनारों वाली मस्जिद कहा जाता है। उम्मीद है के इतने सारे इशारे देने के बाद आप जान गए होंगे कि हम किस मस्जिद की बात कररहे हैं। अगर अब भी आप के पास इस का जवाब नहीं तो फिर और कुछ इशारे देते हैं। ये मस्जिद ज़मीन से 160 फ़ीट बुलंद है और इस के मीनारों का बुलंदी 80 फ़ीट है।
अगर ख़ुशक़िसमती से आप को मस्जिद में नमाज़ की अदायगी का मौक़ा मिलता है तो नमाज़ के बाद आप इसी मस्जिद में से सारे शहर का नज़ारा कर सकते हैं। पस ग़ैरमामूली-ओ-तारीख़ी मस्जिद चूँकि बुलंदी पर वाक़ै है इस तक पहुंचने के लिए जुमला 149 सीढ़ीयां चढ़ कर जाना पड़ता है। चूँकि ये दूसरी मंज़िल पर है। इस लिए पहली मंज़िल तक के लिए 54 और दूसरी मंज़िल के लिए 73 सीढ़ीयां चढ़ती हुई हैं।
हम आप को एक बात और बता देते हैं कि फ़िलवक़्त इस मस्जिद की दीवारों पर जगह जगह शिगाफ़ पड़ चुके हैं मुम्किन है के बरसों से इस पर कोई तवज्जा नहीं दी और वो बड़ी ख़ामोशी और सब्र-ओ-तहम्मूल से इन सब चीज़ों का नज़ारा कर रही है। इतने सारे इशारा और Clues देने के बाद आप लोग जान गए होंगे कि हम किस मस्जिद की बात कररहे हैं हाँ!! आप लोगों ने सही पहचाना। हम चारमीनार की बात कररहे हैं।
क़ारईन! आप को बतादें कि तारीख़ी कुतुब और मौरर्ख़ीन के मुताबिक़ चारमीनार सिर्फ़ मुल्क-ओ-बैरून-ए-मलिक के सय्याहों के लिए एक पुरकशिश सयाहती मुक़ाम या तारीख़ी इमारत ही नहीं है बल्कि ये एक मस्जिद और इस को चारमीनार की चारमीनारों वाली मस्जिद का नाम दिया गया था।
लेकिन अफ़सोस के 5 वें क़ुतुब शाही हुक्मराँ सुलतान मुहम्मद क़ुली क़ुतुब शाह की जानिब से अल्लाह से मांगी गई मिन्नत-ओ-मुराद पूरी होने पर शहर के बीचों बीच बुलंदी पर तामीर की गई इस मस्जिद में नमाज़ तो दूर उसे देखने की भी इजाज़त नहीं है जबकि मस्जिद की अंदरूनी दीवारों में जगह जगह शिगाफ़ पड़ चुके हैं और वक़्त गुज़रने के साथ साथ उन की गहराई में इज़ाफ़ा होता जा रहा है।
हम ने 13 माह क़बल भी चारमीनार के बारे में एक रिपोर्ट शाय की थी। बताया जाता है के माहिरीन आसारे-ए-क़दीमा की एक टीम ने मस्जिद की दीवारों में पैदा दराड़ों-ओ-शिगाफ़ों को देखने और उन का जायज़ा लेने के लिए 30 अगस्त 2002-को मुआइना किया था और शिगाफ़ के मुक़ामात पर ऐसे असटीगरस लगा दिए गए जिन पर मुआइने की तारीख़ दर्ज है।
अफ़सोस तो इस बात पर होता है के इस टीम के मुआइना करने के दस साल बाद भी मस्जिद की दीवारों पर आए शिगाफ़ को दरुस्त करने की कोशिश नहीं की गई। ऐसा लगता है के इस मस्जिद को जान बूझ कर नजर अंदाज़ किया जा रहा है। दूसरी बात ये है के तारीख़ी शहर की इस तारीख़ी मस्जिद में कोई नमाज़ नहीं पढ़ सकता।
बुलंद-ओ-बाला मीनारों, मस्जिदों और फ़र्रज़ंदाँन इस्लाम की अक्सरीयत वाले शहर हैदराबाद में कोई ऐसी तंज़ीम और जमात नहीं है जिस में हुकूमत से ये मुतालिबा करने की जुर्रत हो कि हमें इस मस्जिद में नमाज़ पढ़ने की इजाज़त दी जाय। किसी में हुकूमत से ये सवाल पूछने का हौसला तक नहीं कि आख़िर मस्जिद में मुस्लमानों को नमाज़ पढ़ने की इजाज़त क्यों नहीं? ।
ज़रूरत इस बात की है के महिकमा आसारे-ए-क़दीमा ख़ाब ग़लफ़त से बेदार हो मस्जिद में जगह जगह जो शिगाफ़ या दराड़ें पड़ गई हैं उसे दरुस्त करे और इस की अज़मत रफ़्ता को बहाल करे और सुलतान मुहम्मद क़ुली क़ुतुब शाह ने जिस मक़सद के लिए ये इमारत तामीर करवाई थी, इस का एहतिराम करे। abuaimalaza@gmail.com