नुमाइंदा ख़ुसूसी ये मुंबई शहर हादिसों का शहर है यहां ज़िंदगी हादिसों का सफ़र है , अगरचे माज़ी (भूत काल) में बाली वुड के फ़िल्मी नग़मा (गाना) का ये मुखड़ा शहर अरूसुल बिलाद मुंबई के लिए मौज़ूं था । लेकिन आजकल ये हमारे तारीख़ी शहर हैदराबाद पर पूरी तरह सादिक़ आता है जहां हादिसात (दुर्घटना) रोज़ का मामूल बन गए हैं । जिसे हम शहर में आए दिन पेश आ रहे क़त्ल , चोरियों , अग़वा और धोका दही की वारदातों के साथ सड़क हादिसात (दुर्घटना) में होने वाले ख़तरनाक इज़ाफ़ा के ज़रीया साबित कर सकते हैं । जहां तक सड़क हादिसात (दुर्घटना) का सवाल है हालिया अर्सा के दौरान इन में बेतहाशा इज़ाफ़ा हुआ है ।
जिस के बाइस (अनुसार) बेशुमार कीमती जानें ज़ाए(बरबाद) हुई हैं । क़ारईन (पाठकों) को ये बताना ज़रूरी होगा कि हिंदूस्तान में हर साल 115000 से ज़ाइद अफ़राद मुख़्तलिफ़ सड़क हादिसात (दुर्घटना) में हलाक होते हैं । हाल ही में एक टी वी चैनल ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का इन्किशाफ़ किया है कि हर 3 मिनट में एक शख़्स हादिसा में फ़ौत होता है । जहां तक ट्रैफिक हादिसात (दुर्घटना) में हलाकतों का सवाल है शहर के मज़ाफ़ाती (दूर दराज)इलाक़ा बिलख़सूस क़ौमी शाहराह (national highway) NH7 सब से ज़्यादा मुतास्सिर दिखाई देती है । ये क़ौमी शाहराह (national highway) आए दिन इंसानी ख़ून से रंगीन दिखाई देती है ।
अभी कल ही का वाक़िया है कि रात 9 बजे हसन नगर के करीब एक डी सी एम गाड़ी पंक्चर होने से बीच सड़क पर जिस का टायर तब्दील किया जा रहा था और स्टरीट लाईट ना होने की वजह से इस क़ौमी शाहराह (national highway) पर हमेशा अंधेरा रहता है । रात की इस तारीकी (अंधेरे) में बीच सड़क पर डी सी एम खड़ी होने से एक तेज़ रफ़्तार मोटर साईकल सवार 20 साला नौजवान जिस का नाम माहक है और जो बी काम का तालिब है तेज़ रफ़्तारी के साथ उस की मोटर साएकल , सीधी उस गाड़ी से जा टकराई जिस के नतीजा में नौजवान का चेहरा और सर शदीद जख्मी हो गया जगह जगह से ख़ून बहने लगा ।
कसरत से (काफी) ख़ून निकलने की वजह से बार बार इस पर ग़शी तारी हो रही थी और वो चकरा कर गिर रहा था । इतनी शदीद जख्मी हालत में हम ने इस से क़ब्ल किसी को नहीं देखा । ऐनी शाहिदीन ने बताया कि वो इंतिहाई तेज़ रफ़्तारी से मोटर साएकल चलाने के साथ एक हाथ से मोबाईल फ़ोन से गुफ़्तगु कर रहा था जिस की वजह से वो अपनी गाड़ी पर क़ाबू ना कर सका और सीधा डी सी एम से जा टकराया । जख्मी का मकान चूँकि करीब ही था वालिद को फ़ोन पर हादिसा(दुर्घटना) की इत्तिला मिलते ही वो फ़ौरन वहां पहुंचे और नौजवान को दवाखाने ले गए । यहां ये बात गौरतलब है कि हैदराबाद , इस के मज़ाफ़ाती (दूर दराज)इलाक़ों बशमूल क़ौमी शाहराह (national highway) NH7 या साइबराबाद की हदूद में ट्रैफिक के जितने भी हादिसात (दुर्घटना) पेश आए हैं
इन में मुतासरीन की उमरें औसत 20-22 के दरमियान थीं । अक्सर-ओ-बेशतर शहर के मज़ाफ़ाती (दूर दराज)इलाक़ों में वाक़ै इंजीनीयरिंग , मेडीसिन और दीगर प्रोफेशनल कोर्सेस में ज़ेर तालीम तलबा (विद्यार्थी) ही हादिसात (दुर्घटना) के शिकार होते हैं । अगर इन हादिसात (दुर्घटना) का जायज़ा लिया जाय तो पता चलेगा कि इन हादिसात (दुर्घटना) के लिए वालिदैन और ख़ुद नौजवान भी ज़िम्मेदार हैं क्यों कि आजकल वालिदैन एस एस सी पास करते ही बच्चों को मोटर साईकल दिलवा देते हैं और ना इस बात की तंबीया करते हैं कि एहतियात से गाड़ी चलाएं । हेल्मट का ज़रूर इस्तिमाल करें , गाड़ी चलाने के दौरान फ़ोन पर बात ना करें जब कि पहले ग्रैजूएशन के तलबा (विद्यार्थी) भी बसों से कॉलिज का सफ़र करते थे ।
नीज़ आजकल इतनी भारी गाड़ी बच्चा को खरीद कर दी जाती है जो इस से तीन गुना ज़्यादा वज़न होती है । वो इस गाड़ी का स्टैंड भी नहीं मार सकता । राक़िम उल-हरूफ़ ने जब इस ज़िमन (सन्दर्भ ) में नौजवानों की गाड़ी ड्राइविंग का जायज़ा लिया तो पता चला कि तलबा (विद्यार्थी) इंतिहाई कम उमर होने के बावजूद बड़ी बे एहतियाती से गाड़ियां चलाते हैं । उन के अंदाज़ से ऐसा लगता है कि वो मोटर साईकल नहीं बल्कि तय्यारा पर सवार हों । इस ख़तरनाक रफ़्तार से गाड़ी चलाते हुए किसी के हाथ में फ़ोन होता है तो कोई फ़िज़ा (हवा) में सिगरेट के कश उड़ाते हुए अपनी गाड़ी आगे बढ़ाता है ।
हैरत की बात ये है कि इन लड़कों के सरों पर हेल्मटस तक नहीं होता ,जुल्म तो ये है कि ये नौजवान आपस में शर्त बांधते हैं कि कौन फ़लां मुक़ाम पर कितने वक़्त में पहुंचता है और यूँ ट्रैफिक के दरमियान उन की दौड़ ( Race ) शुरू हो जाती है कभी अगला पहिया उठाकर गाड़ी चलाते हैं तो कभी आड़े तिर्छे अंदाज़ में तेज़ रफ़्तारी के साथ गाड़ी दौड़ाते हैं जिसे देख कर ही रूह काँप उठती है । बेशक माँ बाप को अपनी औलाद से बेपनाह मुहब्बत होती है और वो उन की जायज़-ओ-नाजायज़ ज़िद पूरी कर ही देते हैं । लेकिन ख़ुदा-ना-ख़ासता लड़के को कोई हादिसा पेश आए या घर पर अचानक फ़ोन पर ये इत्तिला दी जाय कि आप का लड़का सड़क हादिसा में जख्मी हो गया ।
तो उन वालिदैन पर क्या गुज़रेगी जिन्हों ने बड़े ही ज़िद के बाद अपने नूर नज़र को मोटर साईकल दिलाई थी लिहाज़ा ज़रूरत ये है कि पहले वालिदैन समझदारी का मुज़ाहरा करें और अपने बच्चों को क़ाइल करवाएं कि गाड़ी चलानी हो तो पहले सेफ्टी को यक़ीनी बनाए ड्राइविंग के लिए हेल्मट का इस्तिमाल करो और मोबाईल फ़ोन पर गुफ़्तगु करने से कुली इजतिनाब(avoid) करो और संजीदा (गंभीर) रहने और बनने की कोशिश करो ताकि ना सिर्फ कॉलेज का फ़ासिला बल्कि ज़िंदगी का तवील (लम्बा) सफ़र भी आसानी तय हो सके ।