बॉम्बे हाइकोर्ट ने एक अहम फ़ैसले में रोलिंग देते हुए कहा कि एक शादीशुदा ख़ातून अपने वालिद के इंतेक़ाल पर सरकारी मुलाज़िमत और मुआवज़े के हुसूल के लिए यकसाँ हक़दार है। अदालत ने कहा कि ग़ैर शादी शूदा लड़कीयों को सरकारी मुलाज़िमत देना शादीशुदा लड़कीयों को इन फ़वाइद से महरूम रखना यकसाँ है।
सरकारी मुलाज़िमत और हक़ ज़िंदगी के मामलों में हर एक को यकसाँ मौक़ा दिया जाना चाहिए। दस्तूर में इस बात की वाज़िह गुंजाइश रखी गई है कि शहरीयों को यकसाँ हुक़ूक़ दिए जाएं। 29 साला स्वेता कुलकर्णी की जानिब से दाख़िल करदा दरख़ास्त की समाअत करते हुए अदालत ने उनके वालिद के इंतेक़ाल के बाद मुआवज़े के तौर पर मुलाज़िमत देने के लिए महाराष्ट्रा महिकमा आबपाशी की जानिब से खारिज करदिए जाने के बाद ये फ़ैसला सुनाया है।
महिकमा आबपाशी ने 1994 की सरकारी क़रारदाद का हवाला देते हुए शादीशुदा ख़ातून की दरख़ास्त को खारिज कर दिया था। इस क़रारदाद में कहा गया था कि सिर्फ़ ग़ैर शादीशुदा लड़कीयां ही वालिद के इंतेक़ाल पर सरकारी मुलाज़िमत की हक़दार होती हैं।