शाहगंज मॆ 250 साला क़दीम और नायाब खंबों के वजूद को ख़तरा

नुमाइंदा ख़ुसूसी
दुनिया में किसी भी इलाक़ा की तहज़ीब-ओ-तमद्दुन और इस की तारीख़ का तहफ़्फ़ुज़ इस इलाक़ा के लोगों के हाथों में होता है । ख़ाब-ए-ग़फ़लत में रहने वाले लोगों की आँखों पर नादानी की पट्टी पड़ जाती है जिस की वजह से वो अपनी क़ीमती तहज़ीब-ओ-तमद्दुन से हाथ धो बैठते हैं जिस के बाद उन के पास अपने वजूद को साबित करने के लिए भी कोई सबूत बाक़ी नहीं रहता ।

हम आज अगर हमारे शहर हैदराबाद के क़दीम मॊहल्ला जात का जायज़ा लें तो पता चलेगा कि मुक़ामी अवाम की ग़फ़लत और नादानी से शहर की तारीख़ी एहमीयत का बड़ी ही होशयारी से सरका किया जा रहा है जब कि लोग हैं कि ख़ाब-ए-ग़फ़लत में इस जुर्म के हिस्सादार बन रहे हैं । क़ारईन ! हम आप की तवज्जा शहर के क़दीम मॊहल्ला जात में से एक मुहल्ला शाहगंज (हुसैनी आलम‌ ) , उस की तारीख़ी एहमीयत और वहां मौजूद चंद तारीख़ी आसार की तरफ़ मबज़ूल करवाना चाहते हैं ।

मॊहल्ला शाहगंज , शहर की 400 साला तारीख़ में दीवड़ीयों और महलात वाले इलाक़ा का क़दीम हिस्सा है । ये इलाक़ा पाईगाह और नवाब ख़ानदानों का मुहल्ला माना जाता था । यहां तीन बड़ी दीवड़यां मुईन अलद विला की दीवढ़ी , ख़ुरशीद जाह की दीवढ़ी और इक़बाल अलद विला की दीवढ़ी वाक्य‌ है । इस के इलावा ख़ूबसूरत फ़न तामीर का शाहकार चौमुहल्ला प्यालीस भी क़रीब है । फ़रीद जाह का मक़बरा भी इसी मुहल्ला में वाक़्य है । घड़ियाल चौक और जामि मस्जिद भी इस इलाक़ा की रौनक को दोबाला करते हैं । उन के क़रीब ही शाहगंज इलाक़ा वाक़्य है जो उन्हें दीवड़ीयों और महलात की वजह से अपनी क़दीम शनाख़्त को बनाए रखे हुए है । इन दीवड़ीयों और महलात के इलावा भी चंद ऐसे आसार हैं जो इस इलाक़ा की तारीख़ी एहमीयत को नुमायां करते हैं और जो शहर की 400 साला क़दीम तारीख़ में इस इलाक़ा की वजूद के गवाह भी हैं ।

इन ही क़दीम आसार में वो क़दीम और ख़ूबसूरत खंबे भी शामिल हैं जो तक़रीबन 250 साला क़बल मुहल्ला के अवाम को रात के वक़्त रोशनी फ़राहम करने के मक़सद से क़ंदीलें लटकाने के लिए गली के चौराहों पर नसब किए गए । ये खंबे आज भी इस इलाक़ा में आबादी के दरमयान जगह जगह नज़र आयेंगे । ये खंबे आज सैंकड़ों बरस बाद भी शहर की तारीख़ के पर्चम बर्दार बने उसी जगह डटे हुए हैं । वक़्त के साथ तबदील होते मौसमों के सितम ढाने के बावजूद इन खंबों ने पिघलना गवारा नहीं किया और उन की साख़त जूं की तूं बरक़रार है ।

गुज़रते वक़्त के साथ साथ शहर की तारीख़ी एहमीयत पर पड़ने वाले गर्द-ओ-गुबार ने उन्हें भी धूल मिट्टी में ज़रूर डुबो दिया है लेकिन इस की बनावट का जायज़ा लें तो इस में आज भी क़दीम फ़न तामीर की ख़ूबसूरत झलक देखने को मिलती है । बेड़ से बने इन खंबों पर बेल बूटीयां कुंदा हैं जो इस बात को ज़ाहिर करती हैं कि बड़ी ही नज़ाकत और नफ़ासत से उन्हें तैय्यार किया गया है । इन खंबों की लंबाई 12 ता 15 फुट है । हर खंबों पर एक उड़ डंडा भी दिया गया है जिस के दोनों जानिब क़ंदीलें लटकाने के लिए दीढ़ दीढ़ फुट की गुंजाइश रखी गई है । दरअसल इलाक़ा में वक़फ़ा वक़फ़ा से होने वाले तामीर कामों की वजह से कुछ खंबे ज़मीन के अंदर काफ़ी गहराई तक धँस गए हैं ।

ज़माना-ए-क़दीम में इन खंबों पर खंदेलों को लटकाने और उन की देख रेख के लिए बाज़ाबता लोग मामूर थे । ये खंबे इंतिहाई ख़ूबसूरत हैं जिन की जाज़बीत वक़्त की गर्द-ओ-गुबार में ढक कर भी मानद नहीं पड़ी है । बताया जाता है कि ग़ैर समाजी अनासिर शहर में वक़्फ़ जायदादों , सरकारी आराज़ीयात , दरगाहों , क़ब्रिस्तानों और आसारे-ए-क़दीमा की आराज़ीयात पर क़बज़ा करने के बाद अब शहर की क़दीम तारीख़ के आख़िरी खंबे भी उखाड़ कर ले जाने पर तुले हुए हैं ।

मॊहल्ला शाहगंज के बुज़ुर्गों ने बताया कि चंद बदनीयत लोगों की नज़रें उन खंबों पर पड़ चुकी हैं जो किसी भी सूरत में उन्हें हासिल करने की फ़िराक़ में हैं । क़ारईन ! हमारे ज़राए के मुताबिक़ इन क़दीम खंबों को हासिल करने के लिए पुराना सामान ख़रीदने वाले ब्योपारी ने चंद ग़ैर समाजी अफ़राद के सामने ये शर्त रखी कि वो इन खंबों को इस तक पहुंचा दें तो भारी क़ीमत अदा कीजाए गी । इस से भी ज़्यादा अफ़सोस की बात तो ये है कि शहर की तारीख़ी इमारत और आसारे-ए-क़दीमा के तहफ़्फ़ुज़ के लिए क़ायम महिकमा आरक्योलोजी के ओहदेदारों की आँखें सब कुछ तबाह हो जाने तक नहीं खुलतीं ।

ओहदेदार शायद ये समझ बैठे हैं कि तारीख़ी विरसा को बोसीदा और तबाह होने के बाद ही उन्हें तारीख़ी आसार शुमार कर के उन की हिफ़ाज़त की जानी चाहिए । ऐसा लगता है कि ओहदेदारों के गहिरी नींद से बेदार होने तक तो सारे शहर की क़दीम शनाख़्त ही मलियामेट हो जाएगी । दूसरी तरफ़ मुक़ामी अवाम भी ख़ाब-ए-ग़फ़लत में हैं । ज़रूरत इस बात की है कि महिकमा आसारे-ए-क़दीमा के ओहदेदार गहिरी नींद से बेदार हूँ और मुहल्ला में क़दीम आसार के तहफ़्फ़ुज़ को यक़ीनी बनाने के लिए ठोस इक़दामात करें ताकि शहर की तारीख़ी एहमीयत के आसार इन क़ीमती और नायाब खंबों को ग़ैर समाजी अनासिर के हाथों में पहुंचने से महफ़ूज़ रहे ।।