तरुण तेजपाल को बचाने के इल्ज़ामात को नकारते हुए शोमा चौधरी ने भले ही तहलका के मैनेजिंग एडीटर के ओहदे से इस्तीफा दे दिया हो, लेकिन उनके लिए मामले से पल्ला झाड़ना आसान नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को देखें तो शोमा का जवाबदेही से बचना मुश्किल है। सहाफी खातून के Sexual harassment की शिकायत पुलिस को न देने पर वह कानून के शिकंजे में फंस सकती हैं। जुमेरात के रोज़ शोमा ने मामले से निपटने में की गई कमियों पर राष्ट्रीय महिला आयोग से माफी मांगी, लेकिन कमीशन (आयोग) उनकी सफाई से मुतमईन नहीं हुआ।
तहलका की मैनेजिंग एडीटर होने के नाते Colleague की शिकायत पर कानूनन शोमा का क्या फर्ज था? इस सवाल पर अगर निगाह डाली जाए तो सबसे पहले सामने आता है सुप्रीम कोर्ट का विशाखा मामले में दिया गया फैसला। सुप्रीम कोर्ट ने विशाखा में तय Directions – Guidelines में कहा है कि अगर Sexual harassment का मामला खासतौर पर ताजीरात ए हिंद (आइपीसी) या किसी दूसरे जुर्म के तहत आता है तो नियोक्ता उसकी शिकायत काबिल अथॉरिटी से करेगा यानी ऐसे जुर्म की इत्तेला पुलिस को देना जरूरी है, जबकि शोमा ने ऐसा कुछ भी नहीं किया।
इलाहाबाद हाई कोर्ट के साबिक जस्टिस एसआर सिंह कहते हैं कि अगर किसी को जुर्म की जानकारी है और वह पुलिस को खबर करने को पाबंद है, फिर भी वह पुलिस को इत्तेला नहीं देता है तो वह दफा-202 के तहत जुर्म करता है। इस जुर्म उसे छह महीने तक जेल या जुर्माने या दोनों हो सकते हैं। शोमा इस दायरे में आ रही हैं। वह पुलिस को जुर्म की इत्तेला देने के काबिल थीं। उनके खिलाफ कोर्ट के फैसले की खिलाफवर्जी का भी मामला बनता है।
शिकायत पर फौरन कार्रवाई न करने पर सफाई देने के लिए शोमा ने जुमेरात के रोज़ राष्ट्रीय महिला आयोग गईं थीं, लेकिन कमीशन /आयोग ने उनकी सफाई और माफी को नाकाफी बताया है। शोमा ने कमीशन /आयोग के रूबरू कहा कि वह मामले से अलग तरह से निपट सकती थीं। हालांकि, उन्होंने मुल्ज़िम को बचाने की कोशिश करने से साफ इन्कार किया है। उन्हें लगता है कि उन्होंने गलती की है।