नजीब और संभल के युवाओं का सवाल राहुल-अखिलेश का सवाल क्यों नहीं
लखनऊ :
रिहाई मंच ने सूरत पुलिस द्वारा संभल निवासी मोहम्मद उस्मान के कथित तौर पर अलकायदा से संबन्ध रखने के मामले में संभल में छापेमारी को यूपी चुनाव में भाजपा द्वारा आतंकवाद के बहाने सांप्रदायिक व खुफिया एजेंसियों के इस्तेमाल का आरोप लगाया है।रिहाई मंच प्रवक्ता शाहनवाज आलम ने कहा कि जब खुद सूरत पुलिस कह रही है कि अलकायदा से संबन्ध रखने के नाम पर दीपासराय, संभल से पकड़े जफर मसूद ने उनसे नवंबर 2016 में यह बताया था कि 2003 में अहमदाबाद के पासपोर्ट आॅफिस से उनके साथ दीपासराय निवासी मोहम्मद उस्मान ने भी पासपोर्ट बनावाया था तब सूरत पुलिस को 4 महीने बाद उसकी जांच की याद क्यों आई। अगर पुलिस आतंकवाद को लेकर इतनी ही मुस्तैद थी तो उसी वक्त मोहम्द उस्मान से जुड़ी जानकारी क्यों नहीं इकट्ठी की। उन्होंने कहा कि क्या गुजरात पुलिस विधानसभा चुनावों का इंतजार कर रही थी कि जब भाजपा की स्थिति बुरी हो जाएगी तो इस मुद्दे के सहारे वो भाजपा की डूबती नाव को पार लगाएगी। शाहनवाज आलम ने कहा कि सूरत पुलिस जिस उस्मान की खोज करने के लिए छापेमारी कर रही है उसे और जफर मसूद के बारे में 9 अपै्रल 2009 को दिल्ली स्पेशल सेल के जांच अधिकारी सतेन्दर सांगवान ने न्यायालय को लिखित में बताया था कि उस्मान पुत्र खुर्शीद हुसैन और जफर मसूद पुत्र मसूदुल हसन की उन्हें किसी मामले उनकी तलाश नहीं है। यही बात 8 अपै्रल 2009 को ही चीफ मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट कावेरी बावेजा ने भी अपने आदेश में कहा था। ऐसे में उन्होंने सवाल किया कि एक तो पहले ही 2015 में अलकायदा के नाम पर गिरफ्तारी कर संभल को बदनाम किया गया और दूसरे इस चुनाव में ऐसा करके आतंकवाद के सवाल पर पुलिस व खुफिया-सुरक्षा एजेंसियां मुसलमानों के खिलाफ माहौल बनाकर ध्रुवीकरण कराना चाहती है। जैसा की वो इससे पहले आजमगढ़ को लेकर करती रही हैं।
शाहनवाज आलम ने कहा कि पिछले दिनों जेएनयू से गायब नजीब के घर पर पुलिस ने छापा मारा और जिस तरह से संभल में छापेमारी की जा रही है वह मुस्लिम युवाओं को धमकाने-डराने की एक और कोशिश है। लेकिन दो युवा जो इन दिनों यूपी की तस्वीर बदलने का दावा कर रहे हैं इन मुद्दों पर उनकी खामोशी साफ करती है कि मुसलमानों के सुरक्षा का एजेंडा उनके पास नहीं है। उन्होंने कहा कि यही राहुल गांधी हैं जिन्हें मुजफ्फरनगर के राहत शिविरों में आईएसआई एजेंट दिख रहे थे वहीं अखिलेश यादव का नजीब से लेकर संभल तक के मसले पर खामोशी साफ करती है कि यह दोस्ती वोटों को लेकर है न कि भाजपा की सांप्रदायिकता से लड़ने के लिए।