फैसल फरीद
लखनऊ, समाजवादी पार्टी और कांग्रेस धीरे धीरे गठबंधन की दिशा में बढ़ रही हैं. उम्मीद हैं आने वाले दिनों में इसका एलान भी हो जायेगा.
कल लखनऊ में सपा नेताओ ने माना की गठबंधन अब फाइनल हैं. सीटें भी बाँट चुकी हैं. सपा ने कांग्रेस के लिए ११० और आरएलडी के लिए ३८ सीटें दी हैं जिसमे वो जद (यू) को भी शामिल करेगी. कल दिल्ली में शरद यादव के आवास पर गैर भाजपाई दलों के नेता जुटे लेकिन कोई अधिकारिक एलान नहीं हुआ. लेकिन जब राजनितिक लोग मिलते हैं तो बात राजनीति की ही होती हैं. मुलायम और नितीश नहीं मौजूद थे. दोनों के बीच सम्बन्ध बिहार चुनाव के बाद बहुत मधुर नहीं हैं.
वैसे भी मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कई बार सार्वजानिक रूप से ये कह कर की कांग्रेस से गठबंधन होने की दशा में वो ३०० सीटें जीत लेंगे, पहले ही अपनी पार्टी में माहौल बना दिया है. ज़ाहिर सी बात हैं की अगर मुख्यमंत्री इस बात को मान रहे हैं तो फिर पार्टी के पास बचा क्या. लखनऊ में सपा नेता मानते हैं की अखिलेश गठबंधन के पक्ष में हैं तो अमर सिंह इसके खिलाफ बताये जाते हैं. अखिलेश ने जब जब अमर सिंह पर सार्वजनिक रूप से कुछ कहा उधर अमर सिंह और ताकतवर हो गए. सपा सूत्रों की माने तो मुलायम सिंह इस समय अमर सिंह की राय को महत्त्व दे रहे हैं. बात सिर्फ यहीं फंसी हैं.
अखिलेश जानते हैं की गठबंधन होने की दशा में वो एक तीर से कई शिकार कर सकते हैं. जिसमे वो बिना किसी विवाद के गठबंधन का मुख्यमंत्री चेहरा बन सकते हैं. टिकट अपने स्तर से बाँट सकते हैं और पार्टी में अपने विरोधियो को किनारे लगा सकते हैं. कितना सफल होंगे ये समय बताएगा.
अब जब अमर सिंह और अखिलेश में अनबन सार्वजनिक रूप से ज़ाहिर हैं तो चुनाव बाद मज़बूत अखिलेश अमर सिंह के लिए फायदे का मामला नहीं होगा. राजनीति में कभी कभी हार कर भी जीता जाता है और इसी क्रम में कमज़ोर अखिलेश अमर सिंह के लिए बेहतर होंगे.
रही बात कांग्रेस और अन्य दलों कि तो उनके पास खोने को कुछ नहीं हैं. जो भी मिलेगा उससे संतोष कर लेंगे. ज्यादा से ज्यादा सीटें मिलने से थोडा ज्यादा ख़ुशी होगी. वैसे भी कांग्रेस के लिए २०१७ चुनाव का कोई मतलब नहीं है और वो २०१९ लोक सभा चुनाव पर ज्यादा ध्यान दे रही है जिसमे राहुल गाँधी लड़ाई में होंगे.
अजीब स्थिति है–दोनों दल गठबंधन चाह रहे हैं, सार्वजनिक रूप से एलान भी कर रहे हैं लेकिन हो नहीं पा रहा हैं. मतलब साफ़ हैं की अपनी पार्टी में कुछ लोग इसको रोक रहे हैं. अखिलेश के शब्दों में राष्ट्रीय अध्यक्ष (मुलायम) इस पर फैसला लेंगे. मतलब साफ़ है कि फैसला उनकी तरफ से रुका हैं. तरीका ये भी निकल सकता हैं की गठबंधन हो और एक नयी पार्टी जिसके मुखिया अखिलेश हो वो जन्म ले लें. राजनीति में किसी बात को नकार नहीं सकते.