रियास्ती सयासी पार्टीयों में इन्हिराफ़ (एक ओर फिर जाना) का रुजहान अफ़सोसनाक है। मुफ़ादात (फायदे) की निगहबानी करते हुए जो क़ाइदीन पार्टी ( पार्टी के लीडर) छोड़कर दूसरी पार्टी में शामिल हो रहे हैं उन्हें अपने सयासी मुस्तक़बिल ( Future/ भविष्य) की फ़िक्र है जबकि असल पार्टी की क़ियादत को इस तरह के इन्हिराफ़ ( रास्ते से हटना) के रुजहान को रोकने के लिए कोई ना कोई क़दम उठाना ज़रूरी है।
सियासत में कोई भी किसी का देरपा दोस्त ( हमेशा दोस्त नही होता) नहीं होता, मगर सच्चा और दयानतदार लीडर अवामी ख़िदमत को असल शआर ( तरीका) बनाकर किसी भी पार्टी में रह कर काम कर सकता है।
वाई एस आर कांग्रेस की उभरती ताक़त ने बिलाशुबा कद्दावर ( ऊँचे दर्जे के) सियासतदानों से लेकर एक अदना ( कमजोर) पार्टी कारकुन ( कार्यकर्ता) को तक अपनी जानिब राग़िब कराना शुरू कर दिया है मगर ये रुजहान और सयासी रग़बत एक आरिज़ी ( temprory/अल्प कालिक) पहलू है।
ग़ैर मह्सूब असासा जात ( पूँजी) केस में क़ानून के शिकंजे में किसे जाने वाले जगन का साथ छोड़ने के बजाय सियासतदानों की टोलियां ऐसी लीडर का साथ देने जौक़ दरजोक़ आ रही हैं तो ये रुजहान या तो सयासी मुफ़ादात की ख़ातिर है या फिर जगन का सर हर किसी पे सर चढ़ कर बोल रहा है।
जगन मोहन रेड्डी-ओ-सी बी आई की तहक़ीक़ात से गुज़रना है, ये वक़्त एक आम लीडर के लिए आज़माईश से कम नहीं ऐसे नाज़ुक वक़्त में सियासतदां दूर भागने की कोशिश करते हैं मगर वाई एस आर कांग्रेस की सफ़ ( कतार) में अहम सयासी क़ाइदीन की बढ़ती तादाद गौरतलब अमर है।
अलवर से ताल्लुक़ रखने वाले कांग्रेस रुकन ( सदस्य) असेंबली ए के सिरीनवास उर्फ़ नानी और तेलगुदीशम लीडर मीसोरा रेड्डी की वाई ऐस आर कांग्रेस में शमूलीयत का ताज़ा वाक़िया (घटना) जगन के हौसलों को मज़ीद (और भी) बुलंद करता है। कांग्रेस और तेलगुदेशम हलक़ों में अंदेशा पैदा होना वाजिबी है।
इस रुजहान को अगर रोका नहीं गया तो इन्हिराफ़ (रास्ते से हटाने वाले) पसंदी की ये लहरें बुलंदी तक उठेगी और आंधरा प्रदेश की सियासत में एक बदतरीन मिसाल क़ायम हो जाएगी। हुक्मराँ कांग्रेस और तेलगुदेशम के मज़ीद ( और भी) अरकान ( सदस्य) असेंबली और क़ाइदीन जगन की सफ़ में शामिल हों तो फिर वस्त मुद्दती इंतेख़ाबात ( वक़्त से पहले चुनाव) के इम्कानात क़वी ( मज़बूत) हो जाते हैं।
हुक्मराँ पार्टी ने इससे पहले भी जगन से हमदर्दी रखने वाले अपने अरकान को पार्टी से जाने से रोकने के लिए उन के कई नाज़-ओ-नखरों को बर्दाश्त किया, बल्कि उन के मुतालिबात के मुताबिक़ ( ज़रूरत के मुताबिक) उन के लिए तरक़्क़ीयाती फंड्स जारी किए। अब कांग्रेस में इस तरह की ब्लैक मेलिंग चल रही है कि जो क़ाइदीन फंड्स की लालच रखते हैं वो रास्त चीफ़ मिनिस्टर किरण कुमार रेड्डी से मिल कर सरदस्त ( वक़्ती) फ़ैसला करने पर दबाव डाल रहे हैं कि उन्हें या तो फंड्स दो या फिर वो वाई एस जगन की पार्टी में शामिल होंगे।
अब कांग्रेस और तेलगुदेशम में कई क़ाइदीन की वफ़ादारी मशकूक ( शक होना) होती जा रही है। गुज़शता रोज़ दिलकुशा गेस्ट हाउस और जगन के महल लोटस में मेसोरा रेड्डी के साथ नाश्तादान करने के बाद सयासी हलक़ों में ये सरगोशियां ( काना फुसी) तक़वियत ( मजबूती) पा रही हैं कि अब कांग्रेस पार्टी को ऐवान असेंबली में तहरीक अदमे एतेमाद का सामना करने पड़ेगा।
कांग्रेस के क़ाइदीन ख़ासकर सदर प्रदेश कांग्रेस सत्य नारावना और विजयवाड़ा के एम पी लगड़ा पार्टी राज गोपाल ने कांग्रेस से अरकान के चले जाने के रुजहान को इक्का दुक्का वाक़्या क़रार दिया है। इन की नज़र में जगन की पार्टी एक डूबती हुई कश्ति ( नाव) है और इस वक़्त जो कोई भी डूबती क़श्ती में सवार हो रहा है वो बहुत जल्द सब के साथ ग़र्क़ ( डूब जायेगा) होगा।
मगर सवाल ये है कि जगन की पार्टी को डूबती कश्ती क़रार देने वाले क़ाइदीन को अपने देव हैकल जहाज़ कांग्रेस के डूब जाने की फ़िक्र लाहक़ क्यों नहीं है। कांग्रेस क़ाइदीन अगर इस तरह ग़फ़लत या हमाक़त में रहें तो वो दिन दूर नहीं जब कांग्रेस का सफ़ाया हो जाए। मेसोरा रेड्डी के तेलगुदेशम से चले जाने के बाद इस पार्टी के कई क़ाइदीन भी हो सकता है कि अपने सयासी मुफ़ाद ( फायदे) हासिल करने जगन का साथ देंगे।
जगन को मौका परस्ती की सियासत महंगी पड़ेगी। अवामी हमदर्दी और सयासी दियानतदारी के दरमयान अगर कोई तवाज़ुन पाया ना जाए तो ऐसे सियासतदानों का मुस्तक़बिल तारीक होगा। तेलगूदेशम के मज़ीद ( और भी) चार अरकान असेंबली और एक रुकन पार्लीमेंट वाई एस आर कांग्रेस में शामिल होने के लिए मौक़ा की तलाश कर रहे हैं, कोई भी लीडर वक़्ती राहत हासिल कर सकता है।
मगर असल पार्टी या सरपरस्त जमात का वजूद उस वक़्त ख़तरे में पड़ सकता है जब पार्टी का सरबराह लापरवाही से काम ले। तेलगुदेशम पर चंद्रा बाबू नायडू गिरिफ़त मज़बूत है, जहां तक कांग्रेस का सवाल है ये पार्टी रियास्ती सतह पर इंतिशार ( टुकड़े टूकड़े) का शिकार हो चुकी है।
ऐसे मज़ीद (और भी) इन्हिराफ़ पसंद ( एक ओर फिर जाने वाले) क़ाइदीन की बेवफ़ाइयों का शिकार होना पड़ेगा। ज़िमनी इंतिख़ाबात (उप चुनाव) के नताइज के बाद हो सकता है कि तेलगुदेशम और कांग्रेस को अपने मज़ीद ( और भी) क़ाइदीन ( सदस्यों) से महरूम होना पड़े।
लेकिन ये इंतिख़ाबात ( चुनाव) जीतने की कोशिश करने के साथ साथ उन्हें अपनी सफ़ को मज़बूत बनाने की ज़रूरत है। इसलिए पार्टीयों के अंदर पैदा होने वाली लीडर की नाराज़गी को फ़ौरी ( फौरन) दूर करने और अपनी सफ़ों को दुरुस्त करने पर ध्यान देना चाहीए। जब कोई सयासी पार्टी मुसलसल नाकामियों से दो-चार होती है तो इस का साथ छोड़ने वाले सियासतदानों की तादाद भी बढ़ती जाती है।
इस वक़्त कांग्रेस और तेलगुदेशम का यही हाल है। इस बात पर किसी को हैरतज़दा नहीं होना चाहीए कि जगन का सह्र चल रहा है लेकिन ये सह्र टूट भी सकता है।
वाई एस आर कांग्रेस में अपना मुस्तक़बिल (भविष्य /Future) तलाश करने वाले क़ाइदीन को आगे चल कर मायूसी हो जाए तो वो अपने सयासी मुआमलात चलाने के लिए दरबदर भटकते फिरेंगे।