सय्यदीना उम‌र फ़ारूक़ की दानिशमंदी(अकलमंदी)

हज़रत अबू हुरैरा (रज़ी.) से रिवायत(ब्यान करते) है कि रसूल अल्लाह स.व. ने फ़रमाया(कहा) (अबू हुरैरा मेरे पैग़ाम की तस्दीक़(सच्चाइ) के लिए) मेरे ये नालैन(चप्पल) ले जाओ और इस बाग़ से बाहर तुम्हें मिलने वाला हर वो शख़्स जो यक़ीन के साथ गवाही देता हो कि अल्लाह के इलावा कोई माबूद बरहक़(सच्चा परवदीगार‌) नहीं, उसे जन्नत की बशारत(खुशखबरी) दे दो।

में निकला तो सब से पहले मुझे सय्यदीना उमर (रज़ी.) मिले और पूछने लगे ये नालैन(जुतें) कैसे हैं?। मेने कहा ये अल्लाह के रसूल स.व. ने बनफ़स ए नफ़ीस(खुद) मुझे अता फ़रमाए(दिये) हैं और इरशाद फ़रमाया(कहा) है कि जो शख़्स भी मुझे एसा मिले, जो दील के यक़ीन से ये गवाही देता हो कि अल्लाह के सिवा कोई माबूद बरहक़ नहीं, इसे मैं जन्नत की बशारत(खुशखबरी) दे दूं।

सय्यीदना उमर (रज़ी.) ने अपना हाथ मेरे सीने पर मारा और फ़रमाया(कहा) अबू हुरैरा वापिस चलो। में रसूल अल्लाह स.व. के पास वापिस आया और सय्यिदना उमर (रज़ी.) की शिकायत करने ही लगा था कि पीछे से हज़रत उम‌र भी आगए। मुझे देखते ही रसूल अल्लाह स.व. ने दरयाफ़त फ़रमाया(पुछा) अबू हुरैरा क्या हुवा में ने अर्ज़ किया(जवाब दिया) मेरी मुलाक़ात सय्यदिना उमर (रज़ी.) से हुई, मेने उन्हें आप का पैग़ाम सुनाया तो उन्हों ने मेरे सीने पर हाथ मारा। नबी करीम स.व., सय्यीदिना उमर (रज़ी.) की तरफ़ मुतवज्जा हुए और वजह दरयाफ़त फ़रमाई(पुछी) तो हज़रत उम‌र ने अर्ज़ किया(कहा) या रसूल अल्लाह! आप ने अबू हुरैरा को ये पैग़ाम दे कर भेजा था?। नबी करीम स.व. ने फ़रमाया हाँ!। इस पर सय्यीदीना उमर (रज़ी.) ने अर्ज़ किया(कहा) या रसूल अल्लाह!
एसा ना कीजिए, मुझे डर है कि एसी बातें सुन कर लोग अमल में सुस्ती करेंगे। ये सुन कर नबी करीम स.व. ने हज़रत अबूहुरैरा रज़ी अल्लाह अन्ना को मना फ़र्मा दिया। (सहीह‌ मुस्लिम)