सरकारी डिसपेनसरी दूध बावली (पालकी गार्डन) का वजूद बेफ़ैज़

ना डाक्टर का पता और ना दरकार अदवियात मौजूद। दवाख़ाना खुलने के औक़ात की पाबंदी भी नहीं हैदराबाद । 22 । अक्टूबर : ( सियासत न्यूज़ ) : हैदराबाद शहर उस वक़्त तक अमराज़ से पाक नहीं होसकता जब तक कि अवाम को बीमारीयों से महफ़ूज़ रखने के लिए क़ायम किए गए सरकारी दवाखाने डिसपेनसरीयां और वहां ताय्युनात डॉक्टर्स अपनी कारकर्दगी को अबतर से इतमीनान बख़श और इतमीनान बख़श से बेहतर नहीं बना लेती। सरकारी दवाख़ाना और डिसपेनसरीयां इस मक़सद से क़ायम की जाती हैं कि शहर और हर मुहल्ला के ग़रीब अवाम को ईलाज-ओ-मुआलिजा की कम ख़र्च पर बेहतर से बेहतर सहूलत फ़राहम की जा सके लेकिन जब इन दवा ख़ानों बिलख़सूस महल्लों में क़ायम की गई डिसपेनसरीयों की कारकर्दगी का जायज़ा लिया जाय तो पता चलेगा कि बलदी इंतिज़ामीया ने इन दवा ख़ानों को ऐसे ही छोड़ दिया है जैसे हुकूमत सरकारी दफ़ातिर में मुलाज़मीन के तक़र्रुर के बाद उन्हें अपने हर काम के लिए ज़िम्मेदार और जवाबदेह बनाए बगै़र छोड़ देती है। सूरत-ए-हाल ये है कि सरकारी डिसपेनसरीयां अवाम को अमराज़ से महफ़ूज़ रखने के कम और ओहदेदारों को उन की ग़फ़लत-ओ-लापरवाही से बचाने के ज़्यादा काम आती हैं। हर मुहल्ला में सरकारी डिसपेनसरीयां क़ायम करके या उन के दरवाज़े खुले रख क्रय ज़ाहिर किया जाता है कि यहां हुकूमत ने अवाम की सहूलत के लिए दवाख़ाना क़ायम किया है लेकिन कई डिसपेनसरीयां ऐसी हैं जिन का वजूद ही बेफ़ैज़ साबित होरहा है। इस की एक मिसाल सरकारी डिसपेनसरी दूध बावली (क़रीब पालकी गाराडन) है जहां डाक्टर की अदमे मौजूदगी अदवियात की कमी और दवाख़ाना खोलने के औक़ात की पाबंदी ना किए जाने से मरीज़ों को मुश्किलात का सामना करना पड़ रहा है। मुक़ामी अवाम की शिकायत है कि दवाख़ाना में ना तो सही मिक़दार में अदवियात मौजूद है ओर ना डाक्टर साहिब ही पाबंदी के साथ आते हैं। डाक्टर साहिब अक्सर सुबह के वक़्त वो भी एक घंटे के लिए दस्तयाब रहते हैं। इन के इलावा डिसपेनसरी में दो ख़ातून कमपाॶनडरस होती हैं जो डाक्टर की अदमे मौजूदगी में दवाख़ाना से रुजू होने वाले अफ़राद को अदवियात फ़राहम करती हैं वो भी नाकाफ़ी मिक़दार में होती हैं। दवाखाने के खुलने और बंद होने के भी कोई औक़ात नहीं हैं। डिसपेनसरी पर लगे बोर्ड पर सुबह और शाम के औक़ात तहरीर हैं जबकि दवाख़ाना सिर्फ सुबह के औक़ात मेंही खुलता है और शाम के औक़ात में दो या तीन दिन में एक बार दवाख़ाना खुला देखने को मिलता है। इस के इलावा दवाख़ाना आने वाले मरीज़ों को उद वयात भी ठीक से नहीं दी जाती हैं। क़िस्सा मुख़्तसर ये कि ये सरकारी डिसपेनसरी किसी भी एतबार से अवाम की सेहत के लिए बेफ़ैज़ साबित होरही है। ज़रूरत इस बात की है कि मुताल्लिक़ा बलदी हुक्काम इस जानिब फ़ौरी तवज्जा देते हुए डिसपेनसरी में बाक़ायदा तौर पर डाक्टर की ताय्युनाती अमल में लाए या फिर मौजूदा डाक्टर को पाबंदी के साथ दवाख़ाना आने की ताकीद करी। इस के इलावा दवाख़ाना मैं अदवियात का भी दरकार स्टाक फ़राहम करे ताकि मरीज़ों को मुश्किलात का सामना ना करना पड़े।